Geet Gana To Hun Main Bhi Chahta : Hasya Vyang Kavita in Hindi
गीत गाना तो हूँ मैं भी चाहता : मजेदार हास्य कविता
हास्य कविता
गीत गाना तो हूँ मैं भी चाहता,
गीत गाने मुझको आता नहीं।
मजबूरी में मेरा यह भी कहना,
गीत गाना मुझको भाता नहीं।।
हूँ मैं भी आपसे कोई कम नहीं,
आप संग मुझमें ये विशेषता है।
आप में भरी हुई हैं विशेषताएँ,
मुझमें भी भरी हुई ये शेषता है।।
आपकी अदाकारी होती है ऐसी,
आपका स्वर सुन जन खींच आते।
आपसे अदाकारी मेरी है कम नहीं,
मेरा स्वर सुन जन भाग जाते हैं।।
आपमें हममें है एक फर्क यही,
आरंभ से अंत के पहले आते हैं।
समापन जब होता है कार्यक्रम,
तब हम ही एक बुलाए जाते हैं।।
आप जाते हैं जहाँ कार्यक्रम देने,
भीषण भीड़ आप बढ़ा लेते हैं।
अभिभावक भी मुझतक पहुँचते,
अंत में भीड़ हम ये भगा देते हैं।।
बढ़ जाती बहुत भारी भीड़ यह,
जब कोकिल स्वर आप गाते हैं।
छँट जाती भारी भीड़ पलभर में,
जब प्रेम से गर्दभ स्वर सुनाते हैं।।
आप गाते निज शीश झुकाकर,
स्रोता के शीश तब तने होते हैं।
शीश झुकता स्रोता का तब नीचे,
जब शीश उठा गर्दभ सम खोते हैं।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560
नोटः यह हास्य रचना का एक छोटा सा प्रयास है। त्रुटियों के लिए क्षमा कीजिएगा।
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