गर्मियों के मौसम पर कविता | Garmi Ke Mausam Par Kavita
Poem on Summer Season in Hindi, गर्मी पर कविता, Hindi Poems on Seasons
17 मई 2022
घड़ा, घट, कुंभ, गागर, मटका
आई है गर्मी लेकर बेशर्मी,
बेबस पड़ी है आज धरा।
कुएँ तालाब जलाशय सूखे,
मुश्किल से भरता है घड़ा।।
पानी भरा यह गागर भी,
कुछ देर में सूख जाता है।
दस मिनट पहले पिए पानी,
दस मिनट मे भूख जाता है।।
अन्न खाने की चाहत न होती,
पल पल प्यास जग जाती है।
गर्मी से गरम हो जाते पानी,
मटके से प्यास बुझ जाती है।।
अमीरों के घर लगते आर ओ,
नव फ्रिज नव वाटर कूलर।
गर्मी से घर में ही बचने हेतु,
घर में उपलब्ध ए सी कूलर।।
गरीब बेचारा थोड़ा बालू लाता,
कुम्म्हार से खरीद लाता मटका।
जल से रखता मटका परिपूर्ण,
प्यास बुझाता आता जो भटका।।
तृप्प होता मानव शीतल जल से,
हृदय तब यह गदगद हो जाता।
गुजरते नित्य सैकड़ों ही राही,
प्याऊ आशीष है दिनभर पाता।।
घट घड़ा कुंभ गागर व मटका,
शीतल जल औ मधुर मिठास।
घड़ा मटका गरीबों के परिश्रम,
गरीबों के ही मिटते हैं प्यास।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
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