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आत्मनिर्भर पर शायरी स्टेटस कविता Shayari Poem Status on self reliance In Hindi

Aatm Nirbhar Shayari Status Quotes in Hindi आत्मनिर्भर शायरी स्टेटस कोट्स


Kavi Kumar Nirmal poet

आत्म निर्भर हो हर गाँव : गांव के विकास पर कविता


आत्म निर्भर हो हर गाँव
आजादी महोत्सव अबकी ऐसा मनाया जाये।
अनाधिकृत धन संचय अपराध बन जाये।

न्युनतम् जरुरतों की आपूर्ति सुनिश्चित हो।
सभी भारतीय संभ्रात, परिवार सुखमय हों।

'जाति वर्ण रंग का भेद, सारा मिट जाये।
संविधान में सकारात्मक संशोधन लाया जाये।

घर घर दीप जलता रहे बारह मास।
अवहेलितों के मनों में भी जगे कुछ आस।

२०२२ का स्वतंत्रता दिवस बात हो खास।
कपटी दल बदलुओं का हो जाए सत्यानाश।

हर गाँव में हो सहकारिता, सभी आत्मनिर्भर हो।
सनातन धर्म में सभों की गहरी आस्था हो।

सीमाओं का नहीं रह जाये कोई बंधन,
आर्यावर्त पुनर्स्थापना हमारी परिभाषा हो।

राष्ट्रभाषा हिंदी केंद्रीय कार्यालयों में लागू हो।
प्रादेशिक भाषाओं का भी यथेष्ठ सम्मान हो।

भारत के वीर शहिदों के परिवार का भार सुनिश्चित हों।
संयुक्त परिवार, एक चुल्हा एक चौका घर घर का नारा हो।

आजादी महोत्सव अबकी ऐसा मनाया जाये।
झंडोत्तोलन कर सभी प्रगतिशीलता की सपथ दुहराये।

धरती पर भारतमाता का सर ऊँचा हो।
गुरुकुल परंपरा से संस्कृत की भी पूजा हो।।

।।वंदे मातरम्।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल


गरीबी और भुखमरी की समस्या पर कविता

मंचों पर चिल्लाते कवि नेता

गरीबी-गरीबी कवि नेता मिल कर, मंचों पर चिल्लाते।
गरीबी के खिलाफ कोई, तलवार उठा नहीं पाते।।

जिन अमीरों ने चूसा, नोचा-खसोटा,
उनके रहमोकरम पर दो पैसा पाते हैं लोग।
उनके कुत्ते की रोटी छीन-झपट,
बड़े चाव से चबा कर खाते हैं लोग।।

गरीबों के धाव पर नमक छींट,
सहला भगवान के भजन गाते हैं लोग!
अश्कों को अपना पुस्तैनी हक़ मान,
चुप-चाप रह, भूखे मरते रहते हैं लोग!!

मंदिर के आगे थाम कटोरा,
कतारों में खड़े दिखते हैं लोग!
धनवानों के पैसों से खड़े नेता सारे,
ठप्पा लगा तालियाँ बजाते हैं लोग!!

डॉ. कवि कुमार निर्मल
Dr. Kavi Kumar Nirmal

खुद की राह तलाश ले : आत्मनिर्भरता पर कविता

मोहब्बत और खुदा

मन बनाया आज खुदा पर इक शेर लिखदूं,
कलम से कहा चल, बेकरार हो वो चल पड़ी

हर्फ पहला मन का--उकेर दीं दो-चार लकिरें।
जो भी उस बख़्त बन पड़ा, खैंच दी तश्वीरें।
आगे कलम ठमक मानो थी कह रही।
चल- 'खुद की राह' तलाश ले ऐ राही।
देखा नहीं मथ- क्या निकलता है मही।
जंची बात, वह तो कह रही खरी-सही।
चल पड़ा दिल में गहरे उतर, गहराई नाप लुँगा।
खोज कर राह उन तक की, आज सोउँगा।
दूर से रौशनी! आफ़ताब सी, रूह थी सामने खड़ी।
छोड़ दिया मनका, खुद से खोजा राह, बात कही बड़ी।
नेह का फ़लसफ़ा समझा, 'खुद की राह' जो बनाता है।
वो हीं क़ायनात का मालिक, पन्नों में लिखा खुदा कहलाता है।
जर्रे जर्रे से मोहब्बत कर के देख- अहबाब तेरे पास है।
सर मत फोड़ रे बंदे- मज़ार पर, वो तेरा खासमखास है।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
मही= छाछ/मट्ठा/मोर्

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