सूर्य की थकान : हिंदी कविता Surya Ki Thakan : Hindi kavita
सूर्य की थकान
ओ ढलते सूरज,
तुम इतने थके,
उदास,
मलिन,
शांत,
क्यों, नजर आते हो?
तुम्हारी प्रचंडता,
दीवानगी,
क्रोधाग्नि,
मादकता,
ज्वाला का
क्या रहस्य था?
हे उगते प्रभाकर,
क्या तुम्हारे खुलते नैनों की
शीतलता
व्यर्थ, दिखावा मात्र थी?
या
तुम जिस शांति का संदेश ले
जिस मार्ग पर बढ़े,
वहां,
तुमने,
केवल
छल, कपट, द्वेष, प्रपंच का
साम्राज्य देखा,
तुम्हारी एक न चली
तब तुम्हारी आंखें
क्रोध से जलने लगी__
तुम्हारी अपनी जलन ने
कहीं, तुमको राख तो नहीं बनाया?
या
हे बाल अरुण,
यौवन की गरिमा ने
कहीं,
तुमको इतना तप्त तो नहीं किया?
हे किशोर दिवाकर,
तुम्हारे हृदय में,
एक ज्योति थी,
जग को तृप्त करने की ललक थी,
तुम परिश्रमी,
उत्साही,
साहसी,
धैर्यवान,
कर्तव्य परायण,
वीर पुरुष,
तुम्हारी सहस्त्रों भुजाएं,
कुछ करने के लिए
उछल रहीं थीं।
इसलिए,
तुम शिखर पर बैठकर
मुस्कुरा रहे थे।
पर अंत में-----
तुम्हारे दिल में भी,
एक विचार आया__
इतने परिश्रम का अर्थ?
तुमको क्या मिला?
और,
इस तरह,
धीरे-धीरे,
अपने परिश्रम को,
अपने में समेटने लगे,
उदास हो गये----
जग की माया के सम्मुख
तुम्हारा तेज हीन हो गया,
कहीं दूर क्षितिज में,
तुम नीड़ की तलाश में,
धीरे-धीरे जा रहे।
_____डा०सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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