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श्रीमती बनाम श्रीमति : श्रीमती व श्रीमति में से कौन सही है और क्यों?

श्रीमती बनाम श्रीमति : श्रीमती व श्रीमति में से कौन सही है और क्यों?

श्रीमती बनाम श्रीमति
मेरे एक प्राक्तन छात्र और शोधार्थी ने जानना चाहा है कि श्रीमती व श्रीमति में से कौन सही है और क्यों? उनसे भी अन्तर्वीक्षा के दौरान किसी विशेषज्ञ ने पूछा था। उन्होंने उत्तर में प्रथम रूप बताया, किन्तु अन्तर्वीक्षक महोदय असंतुष्ट दिखे।
आगे क्रमशः विचार किया जा रहा है।

श्रीमती :
संस्कृत में एक बह्वर्थक विशेषण है 'श्रीमत्' (श्री+मतुप्)। विभिन्न कोशों में इसके कई अर्थ बताये गये हैं; जैसे - धनवान्, सौभाग्यशाली, सुन्दर, सुखद, विख्यात, यशस्वी, लक्ष्मी-पति विष्णु, धनेश कुबेर, अश्वत्थ-वृक्ष, तिलक वृक्ष इत्यादि। ॲंगरेजी में Beautiful, Charming, Lovely, Splendid, Pleasant, Fortunate, Auspicious, Wealthy, Prosperous, Eminent, Illustrious, Dignified- जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं। (देखिये, मोनियर विलियम्स का संस्कृत-अंग्रेजी कोश)

सेवार्थक उभयपद धातु 'श्रि'

[ श्रिञ् सेवायाम् ; अष्टाध्यायी:1/638] में 'क्विप् ' प्रत्यय के योग से 'श्री' शब्द निष्पन्न होता है, जिसके दर्जनाधिक अर्थ होते हैं; यथा- धन-दौलत, प्रचुरता, ऐश्वर्य, राजसत्ता, प्रतिष्ठा, सौन्दर्य, शोभा, रंग, गुण, सजावट, समझदारी, अतिमानवीय शक्ति, पुरुषार्थ-त्रय (धर्म, अर्थ, काम), बेल का पेड़, हींग, कमल, लक्ष्मी इत्यादि।

दूसरी ओर 'मत्' प्रत्यय का अर्थ होता है- युक्त अथवा वाला /वाली। इस तरह, 'श्रीमत्' का अर्थ हुआ श्रीयुक्त, श्रीवाला/वाली। इसका प्रयोग तीनों लिंगों में होता है - श्रीमान् (पु.), श्रीमती (स्त्री.), श्रीमत्(न.)।

श्रीमत् (मूल रूप) से श्रीमती रूप ही क्यों और कैसे बना, 'श्रीमति' क्यों नहीं?

प्रश्न है, श्रीमत् (मूल रूप) से श्रीमती रूप ही क्यों और कैसे बना, 'श्रीमति' क्यों नहीं? इसका उत्तर प्राप्त करने के लिए आपको महावैयाकरण पाणिनि के पास लिये चलता हूँ। उनका एक प्रसिद्ध सूत्र है- 'उगितश्च' (अष्टाध्यायी : 4/1//67) - उगिदन्तात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति॥ उदाहरण - भवती, अतिभवती, पचन्ती, यजन्ती, अर्थात् उगिदन्त प्रातिपदिक से (च) भी स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। उक् + इत: = उगित: +च= उगितश्च सूत्र की व्याख्या इसप्रकार की आ सकती है। उक प्रत्याहार के अन्तर्गत ऋ और लृ दो वर्ण आते हैं; क्योंकि प्रथम पाणिनीय सूत्र 'अइउण्', के 'उ' से शुरु कर द्वितीय सूत्र 'ऋलृक्' के 'क्' तक मात्र दो वर्ण 'ॠ' और 'लृ' आते हैं। इसतरह, 'उ' सहित कुल तीनों वर्णों को मिलाकर उगित प्रातिपदिक नाम दिया गया। इससे तदन्त विधि हो जाती है, अर्थात् जिसका अन्त्य उकार, ऋकार या लृकार इत हो तो, स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय लगता है। ङीप् का मान 'ई' होता है। उदाहरणार्थ- भवत्+ङीप्= भवती (स्त्रीलिंग: आप )। यही संबोधन (Vocative case) में इकारान्त 'भवति' हो जाता है ; यथा - भवति ! भिक्षां देहि। इसीतरह, पचत्+ ङीप्= पचन्ती (पकाती हुई), यजत्+ङीप् = यजन्ती (यज्ञ करती हुई) इत्यादि।

इसी आधार पर श्रीमत्+ङीप् = श्रीमती, बुद्धिमत्+ङीप् = बुद्धिमती, बलवत् ङीप् = बलवती, गतवत् + ङीप् = गतवती, धनवत्+ङीप् = धनवती, पुत्रवत् +ङीप् =पुत्रवती इत्यादि स्त्री-रूप बनते हैं।


श्रीमति :

ऊपर संकेत किया जा चुका है कि 'श्रीमति' 'श्रीमती' का सम्बोधन - रूप है या पुल्लिंग। 'श्रीमत्'(श्रीमान् - श्रीमन्तो - श्रीमन्तः) का सप्तमी एकवचन- रूप ; यथा- श्रीमति (एकवचन )- श्रीमतो: (द्विवचन) - श्रीमत्सु (बहुवचन)। सम्बोधन में इसका वाक्य यों बनेगा- अयि श्रीमति ! शीघ्रतां कुरु/करोतु, अर्थात् हे श्रीमति ! जल्दी कीजिए।

निष्कर्षत: सामान्य अवस्था में 'श्रीमती' का ही प्रयोग करना चाहिए। जो कोई आमंत्रण-पत्र आदि में 'श्रीमति' का प्रयोग करता है, वह अनुचित है।

डाॅ.(प्रो.) बहादुर मिश्र
06 अप्रैल, 2022

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