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रंग में भंग बीती बातों की चुगली Rang Mein Bhang Biti Baton Ki Chugali

रंग में भंग बीती बातों की चुगली Rang Mein Bhang Biti Baton Ki Chugali

बीती बातों की चुगली, शुभ घड़ी पर दुहरा कर।
पीठ पीछे लुक्का छुप्पी, रंग में भंग मिला कर।
चुगलखोर दुर्जनों से, दस कोस दूर रहा कर।
ध्यान भंग करता रहा कृतध्न, जीवन भर।
जैन धर्म के प्रत्याहार की, चर्चा नित कर।
स्वर्ग बनाते नर्क दुष्टजन, परनिंदा कर।
ध्यान को ब्रह्मन् मानकर, अराधना कर।
दांपत्य जीवन अपना, इसे दुर्भर मत कर।
ब्राह्णिभाव में सदा विचरण, प्रिय मित्र कर।
ब्राह्मणश्रेष्ठ की यह परिभाषा, मात्र अपना भर।
मानसिक हिंसा भी हिंसा है, यह समझा कर।
स्वजनों में भेद भाव सृष्ट और, नहीं रे कर।
कमल पुष्पित होता है, कानन का पंकिल सर।
खग युग्म के विचरण लीन, बाधित मत कर।
रंग में भंग का कुपात्र बन, पाप और नहीं कर।
बिगड़े को सुधार मित्र, अच्छी किरदारी कर।
अन्यथा नहीं रोयेगा कोई, जब तूं जायेगा मर।
कुटील राजनीति अपना, देश को तबाह न कर।
ऐसा कुछ कर कि सब लोग कहें तुझको अमर।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
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