Ticker

6/recent/ticker-posts

रमजान का महीना रहमतों और बरकतों वाला महीना है!

Ramzan Ka Mahina Rahmato Aur Barkaton Ka Mahina Hai

पीर ए तरीकत, हजरत मौलाना इरफान साहब मजाहिरी, खानकाह इरफानिया जहाजकित्ता गोड्डा झारखंड

रमजान का महीना रहमतों और बरकतों वाला महीना है। इस महीने में अल्लाह की रहमतें बारीश की तरह बरस्ती हैं। एक एक अमल का सवाब इस महीने में कई गुना बढ़ा कर दिया जाता है। इस तरह यह महीना अल्लाह की रहमतों को समेटने और सवाब का जखीरा जमा करने का महीना है। यह अल्लाह पाक का हम पर कितना बड़ा एहसान और करम है कि उस ने इस रमजान जैसे बाबरकत महीने को पाने की तौफीक अता की और अल्लाह के फजल व करम से हमें रमजान की यह घड़ियां नसीब हुईं। वर्ना कितने ही ऐसे लोग हैं जो इस रमजान से पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो गऐ।

जब अल्लाह पाक ने हमें और आप को रमजान का मोकददस महीना अता किया तो हमें यह चाहिए कि इस के एक एक लम्हे की कदर करें, सवाब हासिल करने के जितने भी तरीके हैं उन सब को अपनाकर नामा ऐ आमाल में सवाबों का जखीरा जमा करें और इस तरह रोजा रख कर नमाज, तीलावत, जिक्र और दोसरी इबादतों के जरिया अल्लाह पाक की रजा और अल्लाह पाक का कुर्ब ( नजदीकी ) हासिल करें। अगर हम ने रमजान के इन मोबारक लम्हों की कदर ना की, हम ने अपने आप को अल्लाह की रहमत व मगफिरत का मुस्तहिक नहीं बनाया और यह महीना यूं ही गफलत में गुजर गया तो बेशक यह हमारे लिए इंतेहाई अफसोस का कारण होगा। बल्कि एक हदीस के मोताबिक हजरत जिबरईल अलैहिस्सलाम ने ऐसे आदमी के लिए हलाक होने की बद दुआ की है जिस ने रमजान का महीना पाया और उस ने इस को अपनी मगफिरत (गुनाहों से माफी ) का जरिया नहीं बनाया।

रमजान के महीने की अहमियत ( महत्व )

इस महीने की कीतनी अहमियत (महत्व ) है कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम रमजान से दो महीने पहले ही यह दुआ करते थे कि ऐ अल्लाह हमारे लिए रजब और शाबान के महीने में बरकत दीजिए और हम को रमजान तक पहुंचाये। ( शोअबुल ईमान लिल्बैहकी हदीस न. 3435 ) यानी कहीं ऐसा ना हो कि हमारी मोत रमजान से पहले आजाऐ और हम रमजान तक ना पहुंच सकें। और हदीस में है कि हजूर ए पाक सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम रमजान की तैयारी रजब के महीने से ही शुरू कर देते थे

जो शख्स इस महीने ( रमज़ान ) को पाऐ तो वह रोजा रखे।

अल्लाह तआला ने कुरआन ए पाक में फरमाया की जो शख्स इस महीने को पाऐ तो वह रोजा रखे। (सूरह अलबकरह आयत न. 185 ) एक बार हुजूर ए पाक सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम रमजान से एक दिन पहले सहाबा ऐ केराम के सामने तकरीर की जिस में आप ने रमजान की फजीलत और अहमियत (महत्व ) बयान की ताकि रमजान की कदर व कीमत पहले ही दिमाग में ताजा हो जाऐ और रमजान का चाँद नजर आने के बाद से कोई लम्हा गफलत में ना गुजर जाऐ।

सहीह इब्ने खोजैमा हदीस न. 1857

उस तकरीर में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिस आदमी ने इस महीने में कोई नफली (औप्शनल ) इबादत की मानो उस ने दोसरे महीने की तुलना में फर्ज ( कम्पल्सरी इबादत ) अदा किया और जिस ने इस महीने में फर्ज अदा किया मानो उस ने दोसरे महीने में 70 फर्ज अदा किए। (सहीह इब्ने खोजैमा हदीस न. 1857 ) इस हदीस का खुलासा यह है कि इस महीने में नफल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब सत्तर फर्ज के बराबर मिलता है।

रमजान का महीना रहमतों और बरकतों वाला महीना है!

रमजान के मुबारक महीने में ज्यादा से ज्यादा नेकियां हासिल करें!

लिहाजा हम तमाम ईमान वालों को चाहिए कि इस मुबारक महीने में ज्यादा से ज्यादा नेकियां हासिल करने और अल्लाह तआला की बारगाह में ज्यादा से ज्यादा तकर्रुब ( नजदीकी ) हासिल करने की कोशिश करें। अल्लाह तआला हमें और आप को इस की तैफीक अता फरमाए, आमीन। ( मोरत्तिब : मुफ्ती सुफयान कासमी )

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ