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सृष्टि की एक जैसी मानवता भरी पहचान : मानवता और एकता पर कविता

मानवता और एकता पर कविता Poem on Humanity and Unity

मगर मानवता ही
(छंदमुक्त काव्य रचना)
पूजास्थल है यहां पर सभी के अलग-अलग,
मगर सभी पूजास्थलों में एक ही विधाता का वास है।
साधना, आराधना सभी करते है तन-मन से,
फिर भी लोगों के मन में यहां, ये कैसा दूजा भाव है।

मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरूद्वारा सभी का निर्माण,
हमने ही अपने जाति धर्मों के अनुसार यहां किया है।
इन्सान हो या जानवर, नर और मादा यही है सृष्टि की रचना,
फिर भी हम यहां आज भी किस गलतफहमियों को पाल रहे है।

सभी पूजास्थल होते है यहां पवित्र और निर्मल,
जैसे बहता है गंगा, जमूना नदियों का पवित्र जल।
उसी जलधारा से खिल उठते हैं सभी खेत और खलिहान,
यही है इस सृष्टि की एक जैसी मानवता भरी पहचान।

अलग-अलग नामों से हम पुकारते है उसी विधाता को,
हमने ही अपने मन से उसी विधाता को धर्मों के अनुसार बांट दिया है।

गर हमारे मन में हो सच्चा और निर्मल भक्तिभाव,
तो किसी भी पूजास्थलों में हमारी दुआएं कबूल होती है।

जहां जहां तक फैली है ये ज़मीं इस धरती पर,
उसी जमींपर अलग-अलग नामों से बसा है ये सारा संसार।
वही धरती सारे जीवों के लिए बनी है वरदान,
और सभी के लिए एक जैसा ही है वो सुंदर प्यारा आसमान।

क्या क्या नहीं बांट लिया हमने इस संसार में,
क्या सबकुछ बांटना ही हमारी फितरत बनी हुई है।
सिर्फ नाम ही इन्सान पड़ा है हमारा यहां पर,
मगर उसी इन्सान नाम से जुड़ी इन्सानियत हम यहां भूल गए है।

जहां होते है मन में अच्छे विचार अचार और संस्कार,
वहां विधाता के कोई भी अलग-अलग रूप नहीं है।
पूजा, साधना, आराधना और इबादत सभी लफ़्ज़ है अलग,
मगर मानवता ही सभी पूजास्थलों में सबसे श्रेष्ठ भक्ति है।

प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
vilasdgaik668@gmail.com
9730661640.
महाराष्ट्र

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