Kamal Khilne Se Kalam Hai Uthata : Hindi Kavita
कमल खिलने से कलम है उठता : हिंदी कविता
कमल
कमल तो है कीचड़ में ही खिलता,
माँ लक्ष्मी को प्यारा है कमलासन।
वही कमल हृदय में भी खिलता,
जहाँ श्री हरि का होता है वासन।।
हृदय कमल है जब भी खिलता,
हाथ कलम शीघ्र ही थाम लेता है।
चल पड़ता है कुछ शीघ्र लिखने,
किसी रचना का ही नाम देता है।।
कमल खिलने से कलम है उठता,
ले चलती है कलम मन के उद्गार।
उगलती कलम कागज पर आग,
आदर सत्कार व्यवहार या प्यार।।
कलम तो है बहुत कुछ लिखती,
दोषों का भी होता है पर्दाफाश।
गलत कदमों से ही पीछे मुड़कर,
सत्कर्मों का ही होता है एहसास।।
कमल खिलता है कीचड़ में किंतु,
संदेश बड़ा ही वह देकर जाता है।
छुपे होते कुछ लाल गुदरियों में,
बाहर आते वह निखर जाता है।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560
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