हिंदी कविता : पागल मन Hindi Kavita : Pagal Man
पागल मन
महल बनाने का सपना देखा
खंडहर पर क्यों रोते हो?
क्षितिज पार उड़ जाना था
पंख कटे क्यों रोते हो?
आशाओं की माला से सज्जित
टूटे घागे देख क्यों रोते हो?
बादल गरजे काली घटाछायी
प्यासी धरती देख क्यों रोते हो?
रे मन मतवाले काले काले
तिमिर बिच प्रज्ज्वलित रेखा
रिस-रिस रचती सप्तरंगी धनुका
बीच भंवर फंस जाती संज्ञा
नमन-नमन हुंकारों का संबल
पथ कर देता निर्मल तन-मन
फिर क्यों होता ये स्पंदन?
राह चुनी कांटे पत्थर वाली ही तो
फिर जगत को क्यों देते ताने?
साथ न कुछ लाये साथ न ले जाओगे
अपनी करनी अपनी भरनी के बिच
उमर गुजर बस बह जाओगे
पी लो गम के मद प्याले को
पागल मन तुम जी पाओगे।
_____डा०सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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