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अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं : देशभक्ति कविता Desh Bhakti Kavita

देशभक्ति कविता हिंदी में : मैं हिन्दुस्तानी हूँ

मैं हिन्दुस्तानी हूँ
दिनांक: 21 जन,2023
दिवा: शनिवार
गर्व हमें है अपने देश पर,
गर्व हमें मैं हिन्दुस्तानी हूँ।
निज भारतीय गौरव गाथा,
नित्य लिखता कहानी हूँ।।
अस्सी वर्ष के उम्र में भी,
कहर ढानेवाला जवानी हूँ।
झुक सकता नहीं कहीं भी,
ऐसा भारतीय मैं पानी हूँ।।
प्रेम बंधुत्व में हाथ मिला लूँ,
ऐसी मधुरत्व मैं वाणी हूँ।
उठ जाए हाथ अरियों की तो,
हाथ तोड़नेवाला ही प्राणी हूँ।।
आए यहाँ कोई कपट लेकर,
शीघ्र समझनेवाला मैं घ्राणी हूँ।
आए यहाँ कोई निश्छल होकर,
झट बढ़नेवाला भी मैं पाणि हूँ।।
लिखता हूँ मैं तो ज्ञान की बातें,
किन्तु मैं नहीं कोई भी ज्ञानी हूँ।
गर्व है हमें इस देश पर अपने,
गर्व हमें है कि मैं हिन्दुस्तानी हूँ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।


देश प्रेम पर कविता : हिंदुस्तान मेरी जान

दिवा : रविवार
सुनो सुनो बात मेरी मान,
नहीं जानते तो लो जान।
मैं तो हूँ सच्चा हिंदुस्तानी,
यह हिंदुस्तान मेरी जान।।
नहीं मानूँ अरि किसी को,
मित्रवत बनाता हूँ पहचान।
फिर कोई है अरि मानता,
वही होता वैश्विक नादान।।
बुद्ध विवेका का राष्ट्र हमारा,
राम कृष्ण आए थे भगवान।
सदा देश रहा है महानों का,
भारतीय धरा पावन महान।।
नहीं होता है द्वेष किसी से,
मित्रता का सबसे अरमान।
न ही झुका हूँ न ही झुकूँगा,
यह है हिंदुस्तान मेरी जान।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।


अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं : देशभक्ति कविता Desh Bhakti Kavita

कविता
अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं
हम एक हाथ में रामायण, गुरू ग्रन्थ,
दूजे में बाईबिल, कुरान रखते हैं,
सच कहता हूँ मैं दिल से यारों,
अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं।

रग-रग भारतीय मेरा परिचय,
महाराणा का स्वाभिमान रखते हैं,
कोई आतातायी नहीं मेरा रोल मॉडल,
हम खुद अपनी पहचान रखते हैं।

हम शूरवीर जहान में ऐसे हैं,
किसी बारूद, बम से नहीं डरते हैं,
बढ़ जाते जब हम दो चार कदम,
दुश्मन बेमौत मरते हैं।

करते हैं हम दुनियाँ को सलाम,
देते हैं उन्हें शान्ति का पैगाम,
जो ऑख दिखातें हैं मुझपर,
हम उनकी ऑख फोड़ देते हैं।

हम हैं शान्ति, अहिंसा के पुजारी,
सदैव अमन-चैन से रहते हैं,
जो मिलकर रहते हैं हमसे,
हम उनकी दुख-दर्द हर लेते हैं।

हम इस धरती को माँ मानते,
तिरंगे को राष्ट्रीय शान जानते,
गर कोई ऑख उठाता इस धरा पर,
वह स्वंय धरा से उठ जाता है।

हममें बहता खून श्रीराम का है,
यह जिस्म व जान वतन के काम का है,
नहीं झुकने देंगे कभी तिरंगे की शान,
सरफरोशी की तमन्ना अपने दिल में रखते हैं।
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अरविन्द अकेला, पूर्वी रामकृष्ण नगर, पटना-27

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