कब हंसेगी बिंदिया - हिंदी कविता Kab Hasegi Bindiya - Hindi Poem
कब हंसेगी बिंदिया
(मनहरण घनाक्षरी काव्य)
रूत बदल गई है,
बहारें खिल गई है,
खत्म हुई पतझड़,
तेरा ही है इंतजार।
निगाहें ढूंढ रही है,
साजन कहीं दूर है,
नयनों में ख्वाब लिए,
दिल है ये बेकरार।
मन हुआ बेचैन है,
लगी कैसी आगन है,
अश्कों में डुबी है नैना,
करो तुम इजहार।
कब मिटेगी दुरियां,
कब हंसेगी बिंदिया,
बांहों में लेलो मुझको,
मांग मेरी भरकर।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद महाविद्यालय लातूर
9730661640
महाराष्ट्र
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