Jivan Ki Sacchi Baten Anmol Vachan Suvichar
यही इंसान का अकेला कष्ट है!
उदास होते हो तो दूसरों की वजह से,
उत्तेजित होते हो तो दूसरों की वजह से,
ऊबते हो तो दूसरों की वजह से,
आकांक्षा है तो दूसरों की,
और डर है तो दूसरों से,
सब कुछ तो दूसरों का ही है।
हम दूसरों के प्रभावों के अलावा हैं क्या?
जैसे मोहल्ले के सौ घरों से
थोड़ा-थोड़ा खाना इकट्ठा किया जाए
और उसको मिला दिया जाए,
ऐसे हम हैं – खिचड़ी।
जब अपना कुछ नहीं होता,
उसी स्थिति को गुलामी कहते हैं।
तुम जो कुछ भी सोचती हो कि
पा करके ज़िन्दगी
जीने लायक बनती है,
तुम देखो न उसे पाने की
हसरत दूसरों से ही है।
कोई पैसा दे दे,
कोई प्रतिष्ठा दे दे,
कोई नौकरी दे दे,
कोई प्रेम दे दे।
तुम बाज़ार जाकर
कोई नया कपड़ा
खरीद कर ले आए हो,
तुम पहनकर निकलो
और कोई ज़िक्र ही न करे,
तुम्हें पसंद नहीं आएगी ये बात।
यही इंसान का अकेला कष्ट है
कि उसको आत्म मिला नहीं है।
मैं की उपलब्धि नहीं हुई है—
इसके अलावा कोई कष्ट होता नहीं।
इसीलिए जानने वालों ने
लगातार जो कहा है न
कि संसार झमेला है, संसार दुःख है—
उसका अर्थ यही है।
उन्होंने ये नहीं कहा है
कि संसार में कोई दुःख है।
संसार में दुःख तब है
जब तुम संसार के सामने
याचक की तरह खड़े रहते हो।
संसार में दुःख तब है
जब तुम नहीं हो
और बस संसार है।
तब संसार दुःख है,
अन्यथा संसार दुःख नहीं है।
कवि खूँटातोड़
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