आर्यावर्त से इंडिया की यात्र : हिंदी कविता
सर्ग: २३
'सोने की चिड़िया' भारतमाता लुट कर तब मृतप्राय हुई थी।
धनाढ्यों की छत्रछाया तले सरकारी संचालन- मजबूरी थी।
राजनीतिक स्वतंत्रता का आनंदोत्सव, दिल्ली सजनी थी।।
७३ साल पूर्व संविधान बना, १/२६/'५० गणगतंत्र दिवस मनाये।
प्रथम राष्ट्रपति का 'समापन भाषण' का पैरा अहम् सुने सुनाये।।
दुखदायी, सांसद विधायकों की गुणवत्ता निर्धारण खोटपूर्ण है।
विधाता अयोग्य ऊच्चाधिकारियों से संचालन भी दोषपूर्ण है।।
चयनित प्रतिनिधियों के नीचे रह पदाधिकारी काम चलायें।
संविधान निर्माताओं की विषिष्ठ बौद्धिक तैयारी करवायें।।
संतुलित तीक्ष्ण दृष्टि नैतिकता, उदारता ईमान चाहिये।
योग्यताओं का मापदंड तय कर, जनहितकारी बनाये।।
संविधान दोषयुक्त हो तो योजनाएँ असफल होती हैं।
ऋचा-आयत-ग्रंथ-पैरेबल से हीं धारायें निखरती है।।
राजधानियों में रह अपना और अपनों का हित करना।
खून बहा मिली आजादी, सौहार्दपूर्ण सब बन रहना।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
पश्चिम चंपारण, बिहार
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