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कवियों की गोपनीय वार्ता का अंश Kaviyon Ki Gopniya Varta Ka Ansh

कवियों की गोपनीय वार्ता का अंश : हिंदी कविता Poem in Hindi

अहोभाग्य कलियुग में, ऐसा घर आँगन जो पाये।
बूढ़े माँ-बाप के बाजू से, बेटा छुप निकल जाये।।

व्यथा अपार है वृद्धों की, संसार समझ नहीं पाये।
वृद्धाश्रम में डाल, वसियतनामे पर मुहर लगवाये।।

साथ रहना कुछेक की, मानो कोई मजबूरी है।
बटवारा विलम्बित जब तक, साथ जरुरी है।।

इतिहास रक्तपात से भरा, शर्मसार हमने पाया है।
बाप को मार ताज पहन, कानून वीर बनाया है।।

अपनी औलाद हीं जब काहिल बन, पल्लु में जा छुपता है।
माँ को 'चुप रह बुढ्ढी' कह, मातृऋण से मुक्त वह होता है।।

माँ के आँसुओं की आह नहीं, सर पर हाथ सदा रहता है।
नालायक हो लाख मगर, माँ का लख्तेजिगर बेटा होता है।।

कलमकार सदा सकारात्मकता की बात कर, उछ्वास भरता है।
पीड़ा असह्य निजकी परंतु, जाँध उघाड़ कर नहीं कभी रोता है।।

कमाल के बच्चे एलियंस आज के, चाँद को सेटेलाइट पढ़ते हैं।
डाटा न भरवाया अनलिमिटेड तो, मुँह फुला कर हुंकार भरते हैं।।

कवि लगे रहे आजीवन हौसला आफजाई के, करतब दिखला कर।
युवापीढ़ी अतिव्यस्त है, अपनी दुनिया में मेगा हेड फोन लगा कर।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल


kavi Kumar Nirmal

जब मैने उसको काले लिबास में देखा : हिंदी कविता

जब मैने उसको काले लिबास में देखा
कौन कहता है खुबसूरती महज़ लिबास से होती,
काले लिबास में कजा भी हसीन, खंजर चुभोती यारों।

कभी चेहरे पर छाई सादगी को भी देख लो,
दिल में झांक मुआयना कर देखो तो यारों।

बदी से बुराई- नेकी से इंसानियत है टपकती,
कुदरत के हिसाब से भी जरा चल के देखो तो यारों।

पानी, हवा और खुदा का भी भला! कोई रंग है होता,
सिर्फ सफेद और काला रंग हुआ करता है यारों। 

सच्चाई की राह पर चल कर तो जरा देखो,
जरुरतमंदों का हमदर्द बन मस्ती छाती है यारों।

अपना सब लुटा कर कोई गरचे है सँवरता,
खाली हाथ रहने का मजा कुछ और है यारों।

तकदीर से तदवीर तक की सफर है जायज,
अगला कदम उठा के तो जरा देख लो यारों।

कुदरत का आईन ओ' फ़लसफ़ा है सीधा,
सादगी से जिंदगी बसर करके तो देखते यारों।

कौन कहता है खुबसूरती महज़ लिबास से होती,
कभी उस चेहरे ओ' सादगी को भी देख लेते यारों।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
10/02/2022

भाग दो : जब मैंने उसको काले लिबास में देखा है : हिंदी उर्दू कविता

जब मैंने उसको काले लिबास में देखा है।
नायाब करिश्मा कुदरत का चिलमन के पार देखा है।
देखा है हमने झांकतीआँखे ओ' धड़कते दिल का तूफान, 
सच कहता हूँ यारों, लबों पर आ ठहरा इकरार देखा है।।

कभी मोहब्बत का पैगाम, कभी बरबादियों का अंजाम।
फ़तह कीले पर लहराता झंडा, कभी कर्बला का मैदान।
अनजान शक्स, जब मैंने उसको काले लिबास में देखा।
कभी अहबाब तो कभी लिबास में रक़ीब बना शैतान।।
 
हबीब हो खसमखास माना, सख़्शियत लिबास से छुपाना। 
नेह कि किताब बंद, इल्म इस तरा जिगर में जब्द कर सताना।
जज्बा कदमों की चाल से जब छुपा नहीं सकते यारब,
काले लिबास में लिपटा देख, अँगुलियों का बेहिसाब मचलना।।

काफ़िला तेरा लम्बा- गुबार को रुख़्सत मत कर : उर्दू कविता

Sub.- आंखें
विधा: उर्दू कविता
काफ़िला तेरा लम्बा- गुबार को रुख़्सत मत कर।
अलविदा की आग का अहसास है, साद न कर।।

माना के हैं साथ इंतज़ार के दुश्वार लम्हें,
इनको खुर्दबीन से मत निहारा न कर।
हौसला ओ' दम है गर-चे- पास तेरे,
कारवां के संग-संग बस चले जाया कर।।

ख़्वाबों में की ख्वाहिश न पूरी हुई है कभी! 
मुक़ाम की ओर किश्ती को धुमा बहाया कर। 
साहिल पे नज़र सदा रखना अपनी कड़ी,
ओ' फरिस्तों के खासमखास बंदों;
आमीन सबको कह दोस्त आगे बढ़ जाया कर।। 
हौसला ओ' दम है गर-चे- पास तो,
कारवां के संग कदम मिला मुकाम तक जाया कर।।

"आफताब" खुबसूरत चाँद का इंतजार कर-
ढल हर शाम- नये-नये ख्वाब है बस सजाया कर।
चाँदनी लुटा चाँद प्यासे चकोर की-
तिश्नगि जगा आँखों को तरसना मिटाया कर।।

बादल छुपा के आगोश में चाँदनी-
तहन्नुस पुरज़ोर है लुटता-लुटाता। 
घटा का काफ़िला कड़क-बरस,
गुबार मानिंद शराबोर कर जाया कर।।

गुलशन तरोताज़ा है तेरी बदौलत,
पतझड़ का अब दोस्त तूं नाम न ले। 
काली घटायें हैं बेताब बरसने को-
तिश्नगी मिटा सारी- चाहतों को मिटाया कर।।

पुरज़ोर उछाल है समन्दर में-
साहिल से पुकारता अहबाब है। 
इंतजार की कीमत पूरी बसूल-
मंजर खड़ा आस-पास, आँखें टिकाया कर।।

"चलते-चलते" क़ायनात से भरपूर सीख लें हुनर। 
माँ के आँचल से प्यार छलकता- सीख लें मगर।। 

मन की आवाज़ से इल्म सारा सीख ले।
घड़ी की टिक्-टिक् देख फर्ज सीख जाया कर।।
इंतजार के लम्हें हिसाब कर जीना सीख लें।
गुबार चले पीछे साथ- साथ मगर,
धूम कर मत देख- चलतों का हाथ संग थाम बढ़ा कर।। 

कारवाँ आगे निकल कर गुजर तो जाएगा।
गुबार के निशानों को यूँ नहीं मिटाया कर।।
वख़्त की पाबंदी हैं, मन में रखा सब रह जाएगा। 
हौसला ज़ब्द हो सीने में उठा तूफ़ान, कहर लाया न कर।।

सब तक रहे आँखे तेरी नीली झील सी,
डूबा कर अब कहीं शहर छोड़ जाया न कर।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल_____✍️
बेतिया, बिहार
@⁨Komal Sharma⁩ 
@⁨Anjali Sharma⁩ 
@⁨Bhawna

बोझिल आँखें नज़र पड़ते हीं : छोटी सी हिंदी कविता

बोझिल आँखें नज़र पड़ते हीं
बेहिसाब हो खो जाती हैं।
यारब की तड़प
बेइंतहा तसव्वुर लुटाती है।
काश आगोश में तुझे भर लेते,
लबों की तिश्नगी छूते हीं
दिल लबरेज़ किये जाती।।

के० के०

हशरत कुछ और मचल जाये : उर्दू कविता हिंदी में

हशरत कुछ और मचल जाये
हशरत कुछ और तड़फ जाये
खुद को देख शर्म से
पलके कुछ और झुक जायें
तमन्नाओं का इंतजाम करा जाये
तिश्नगी मिटा कीला फतह किया जाये
गेशुओं में उलझ बार बार उतरा जाये
पलकों पर ठहर बहका जाये
आँखों से दिल में उतरा जाये
लबों को सराबोर किया जाये
अँगुलियों की हरकत से
रोम रोम सिहर जाये
हर मंजिल की सफर
मुकम्मल हो जाये
बता अब और तेरे लिये
क्या किया जाये?
जवानी जोश को कायम रख
क़यामत तक ठहरा जाये!
के० के०

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