हिंदी कविताएं : यादें हमेशा साथ जो रहती और समझदारी
यादें
हमेशा साथ जो रहती,
कभी ना दिल से जाती है।
उसे ही याद हम कहते,
असर ऐसा कराती है।
अंधेरे या उजालों में,
मेरे मन के सवालों में,
कभी वो पास रहती है,
कभी वो दूर जाती है।
हो अच्छे या बुरे फिर भी
यादें, याद होती हैं,
कभी एक टीस उठती है,
कभी फरियाद होती हैं।
कभी रहते हैं जब तन्हां
चुपके से वो आती है।
कभी लब मुस्कुराते हैं,
कभी दिल को सताती है।
अगर इंसान हैं हम सब
कुछ ऐसा काम कर जायें
रहें दुनिया में हम कायम,
या दुनिया से चले जायें।
रहेगी प्रीत बस जिंदा,
हमारा क्या ठिकाना है,
रहेंगे सांस है जबतक,
हमको भी तो जाना है।
बिखेरें प्यार दिल में हम
वो अद्भुत काम कर जायें,
जहाँ में याद बनके बस,
सदा यादों में बस जायें।
प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
हिंदी कविता : समझदारी, बात ही बात में, जो मिले साथ में
समझदारी
बात ही बात में, जो मिले साथ में
बस यूं ही मुस्कुराते चलो,
हम खुशी को बिखेरे चलें,
तुम हसीं को लुटाते चलो।
ये तेरा बचपना, जा न पाये कभी
पल जो अनमोल वो, याद रखो सभी
कर्म पथ पर हुआ अग्रसर जो यहाँ
पायेगा वो सफलता, जाकर तभी।
जीत या हार हो, पर क्यूं तकरार हो
सारे गम को मिटाते चलो,
हम तो वादा निभाते चलें,
तुम भी सपने सजाते चलो।
जब मैं, मैं ना रहूं, जब तूं, तुम ना रहो
होठ मेरे हिले, बात तेरी ही हो,
हो समर्पण से उज्ज्वल ह्रदय भावना
आंसू तेरे गिरे, आंखें मेरी ही हो।
तुम मिलो ना मिलो, कम न ये प्यार हो
याद बनके तूं आते चलो,
हम तेरे मन पे छाते चलें
तुम मेरे साथ गाते चलो।
बात ही बात में..!!!
प्रीतम कुमार झा।
महुआ वैशाली बिहार, भारत।
(अद्भुत समर्पण की अद्भुत दास्तान)
हिंदी कविता : बिन पंखों के उड़ना है हम नवयुग के अभिमन्यु हैं
बिन पंखों के उड़ना है
हम नवयुग के अभिमन्यु हैं,
हर एक कदम अब लड़ना है।
हर बाधाएँ हर मुश्किल से,
हर हाल में पार उतरना है।
हम बढ़े नहीं वो ये चाहें,
देकर बाधा रोके राहें।
हम घिर जायें तूफानों में,
रोयें चीखें और चिल्लाये।
जो जीत का सेहरा सजा चुके,
कब कदम ये उनके रूकते हैं ।
वे बिन पंखों हीं उड़ते हैं,
और बिन पैरों के चलते हैं।
है गान यहीं अरमान यहीं,
अब राह कोई आसान नहीं।
यहाँ पग-पग दुश्मन बैठा है,
बन दृढ़ प्रतिज्ञ संधान यहीं।
अब अर्जुन भी खुद बनना है,
खुद को हीं कृष्ण बनाना है।
खुद को उपदेश दे गीता का,
भव सागर पार लगाना है।
जो स्वयं हीं भाग्य बनाते हैं,
बस मंजिल को हीं तकते हैं,
वे बिन पंखों हीं उड़ते हैं,
और बिन पैरों के चलते हैं।
हर षड्यंत्रों को मात करें,
हम हर शत्रु पर घात करें।
जो बस लातों के भूत बनें,
अब क्या हम उनसे बात करें।
जो प्यार मोहब्बत ना माने,
देना बस धोखे हीं जाने।
हम आगे की जब बात करें,
वो चुगे बस दूजे दाने।
अब धैर्य भी व्याकुल हो बैठा,
मिलकर इतिहास बदलते हैं,
वे बिन पंखों हीं उड़ते हैं,
और बिन पैरों के चलते हैं।
प्रीतम कुमार झा
महुआ वैशाली बिहार
हिंदी प्रेरणादायक कविता : मौन नही अब रहना है जीवन में लाख थपेड़े हों
मौन नही अब रहना है
जीवन में लाख थपेड़े हों,
बाधा-विघ्नों के घेरे हों,
मिल संग-साथ ही बहना है,
पर मौन नही अब रहना है।
क्यों देते सबको दोष हैं हम,
क्यों मदमस्त बेहोश हैं हम,
क्यों आंख पे पट्टी बंधी हुई,
क्यों सबके लेते रोष हैं हम।
अब चलना केवल चलना है,
खुद के सांचे में ढ़लना है,
कर्मों से भाग्य बदल देंगे,
पर मौन नही अब रहना है।
ये शुरूआत है झांकी है,
अभी धर्मयुद्ध तो बाकी है,
ना जाने किसका क्या होगा,
कोई पैमाना कोई साकी है।
झूठी आशा को तज देंगे,
हम जीत से खुद को सज देंगे,
अब सच्चाई ही गहना है,
पर मौन नही अब रहना है।
मुश्किल तो आते रहते हैं,
हम फिर भी गाते रहते हैं,
हमसे है चुनौती घबराती,
जय गान रचाते रहते हैं।
बस सच ही हमारा ढा़ल रहे,
भारत का ऊंचा भाल रहे,
हंसकर दर्दों को सहना है,
पर मौन नही अब रहना है।
भारत का हमको मान रहे,
सबसे बढ़कर ये शान रहे,
हम गीत देश के गायेंगे,
जब तक इस तन में जान रहे।
सबसे पहले है देश मेरा,
सबसे अद्भुत ये विशेष मेरा,
सारी दुनियां से कहना है,
पर मौन नही अब रहना है।
प्रीतम कुमार झा
महुआ वैशाली बिहार
हिंदी कविता : शब्दों का इंतजार Hindi Poem Shabdon Ka Intezar
शब्दों का इंतजार
मैं अक्सर
घंटों बैठता हूँ
कलम,कागज लेकर
सोचता हूँ कि लिखूं
तेरे बारे में, वो बातें
जो किसी ने किसी को
कभी न कही हो।
वो सारे ख्यालात
जो किसी के दिल में
कभी न आये हों।
वो अनुभूति जिससे
कोई न गुजरा हो
वो अवर्णनीय पल
जो मेरे सिवा किसी पर
कभी न गुजरे हो।
मगर तभी सोचता हूँ
नहीं, मैं ऐसा कर न सकूंगा
जो शब्द बार-बार
उपयोग में आते- जाते हैं
उनसे मैं तुझे संबोधित
कर न सकूंगा
मैं इंतजार में रहूंगा
उस दिन का
जब तेरे वास्ते नये शब्द गढ़ूंगा।
मैं उसी दिन, हां उसी दिन
अपनी कल्पना को
हकीकत में बदलूंगा।
आयेगा एक दिन जरूर
वो पल भी आयेगा,
जब तेरे टक्कर का कोई
अजूबा शब्द
मुझे मिल हीं जायेगा ।
---प्रीतम कुमार झा।
महुआ,वैशाली,बिहार
हिंदी कविता : देख-देख प्यारी दुनियां को, Hindi Urdu Sahitya Sansar
अनोखी चाहत
देख-देख प्यारी दुनियां को,
कब तक यूं ललचाऊं मैं।
मन के आंगन मंजर छाये
भंवरा बन उड़ जाऊं मैं।
आंगन वो हैं आने वाले,
समझ न आये करूं मैं क्या,
मन होता है फूल बनूं और
खुद को आज बिछाऊं मैं।
उनसे हीं तो रातें मेरी,
दिन भी उनसे निकला है।
केवल उनकी एक छुअन से,
मुझसा पत्थर पिघला है।
नींद भी मेरी शायद सोयी,
सपने पाले आंखों में।
गाल हुये हैं सुर्ख गुलाबी,
मन हीं मन शरमाऊं मैं।
चाहत उनसे हुयी जवां है,
पंख लगे अरमानों में।
अब तो छायी हरियाली है,
हर गुलशन-विरानों में।
रोम-रोम में बसे हैं ऐसे,
जैसे उर में प्राण बसे।
ऐसा मुझसा कौन भला है,
खुद पर अब इतराऊं मैं।
मैं हीं मीरा, मैं हीं तुलसी,
मैं हीं सूर-कबीर हूँ।
बंधन उनसे बंधी है ऐसी,
प्यार भरी जंजीर हूँ।
तोड़े से भी टूट न पाये,
गर्दिश की औकात है क्या।
मन तो करता पल में जैसे,
आसमान चढ़ जाऊं मैं।
प्रीत हमारी लगे जुदा है,
वो है ईश्वर वहीं खुदा है।
प्यार न जाने जाति मजहब,
दर्दे दिल की वहीं दवा है।
अब तो धड़कन उन्हें पुकारे,
जैसे चांद चकोर को।
प्रेम ग्रंथ में सबसे ऊपर,
अब तो नाम लिखाऊं मैं।
प्रीतम कुमार झा
अंतरराष्ट्रीय कवि, गीतकार सह शिक्षक
महुआ वैशाली बिहार
दिल से बस स्वीकार किया
दिल से बस स्वीकार किया।
जज्बातों का दौर उठा था
यादों की इक आंधी थी
टूट गये थे डोर सभी जो
प्रीत की हमने बांधी थी।
मुश्किल पल में सब था मुश्किल
सब कुछ धुंधला-धुंधला सा
छवि मनोरम काले लगते
काले-काले उजला सा।
फिर भी हमने धैर्य न खोया
मन को एक विस्तार दिया
भूल गये सब दर्द तुम्हारे
दिल से बस स्वीकार किया।
मौन भी व्याकुल हो बैठा जब
झड़ी लगी इल्जामों की
हावी सच पर झूठ हुआ था
बारिश हुई ईनामों की।
फिर भी हमने कुछ ना बोला
दुख ना तुमको हो जाये
एक ना एक दिन भेद खुलेगा
सच जो तुमको मिल जाये।
सुख-दुख आते हीं रहते हैं
हंसकर दुख को टार दिया
भूल गये सब दर्द तुम्हारे
दिल से बस स्वीकार किया।
कैसे कोई प्यार करेगा
खुद पर जब विश्वास नहीं
मिलना उनका मुश्किल हीं है
जब मन में हीं आस नहीं।
उनको हीं है मिली सफलता
जो खुद को तैयार किये
मन-प्राणों से उद्यत होकर
एक बने सब वार दिये।
बनके पूरक हमने साथी
सपनों को आकार दिया
भूल गये सब दर्द तुम्हारे
दिल से बस स्वीकार किया।
अब ऐसा कुछ कर जायें
तुझको पढ़ें निखर जायें
तूं धरती मैं फूल बनूं
टूटे और बिखर जायें।
भाव हमारे उन्नत हों अब
दिल में विष ना व्याप्त रहे
प्यार से झोली भर जाये
ह्रदय प्रेम से तृप्त रहे।
तन-मन-जीवन अर्पण करके
तुझपर बस एतबार किया
भूल गये सब दर्द तुम्हारे
दिल से बस स्वीकार किया।
---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
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