जब वो शीशे में ढल गया होगा– सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ की ग़ज़ल हिंदी में
गजल उर्दू शायरी
जब वो शीशे में ढल गया होगा।
शीशागर भी उछल गया होगा।
ज़ेबो ज़ीनत पे जिस्म की उसके।
आईना भी मचल गया होगा।
देखकर उसकी नीम बाज़ आँखें।
क़ल्बे साग़र दहल गया होगा।
मरमरी पाँव पड़ते ही उसके।
संगेमरमर पिघल गया होगा।
जब हुआ होगा सामना उससे।
चाँद बचकर निकल गया होगा।
जब तलक आएगा वो परदेसी।
जाने क्या - क्या बदल गया होगा।
पढ़के मेरी ग़ज़ल फ़राज़ उसका।
क़ल्बे मुज़तर संभल गया होगा।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
मुरादाबाद
उर्दू शायरी हिंदी में
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