Motivational Hindi Poem : मन चंगा तो कठौती में गंगा : कवि कुमार निर्मल
"मन चंगा तो कठौती में गंगा"
ह्रदय की आकाश गंगा में प्रभु दर्शन होगा।
एतदर्थ निराकार का वरण करना होगा।।
हलचल मुक्त गगन में विचरण करना होगा।
वराभय मुद्रा का शुभ-दर्शन तभी मिलेगा।।
अंतः-कूप को प्रशांत सागर सा प्राण मिलेगा।
अपिरिमित कुंठाओं से सहज त्राण मिलेगा।।
प्रकृति से दूर जीया जीवन दुस्कर होगा।
रमो प्रकृति में प्रति-क्षण, सुख हीं सुख होगा।।
जीव मात्र से प्रेम सहज है,
प्रेम-सरिता को बहते देना होगा।
कल्पतरु बन सर्वस्व जन-हित में बिखेर,
अभय दान देना होगा।।
असहाय-गरीब हुए निष्प्राण, किंचित नव-जीवन मिलेगा।
निष्कपट, अहिंसा-पथ पर अविरल चलना होगा।।
ह्रदय की आकाश गंगा में प्रभु दर्शन होगा हीं होगा
आत्म-दाह की नौबत क्यूँ आये?
मानव का धर्म अगर एक हो जाये!
आत्म-पीड़न की आग़ बुरी है,
स्वार्थ-हिंसा की आग़ अगर बुझ जाये!!
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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