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बदलते हुए देश दुनिया समाज और लोगों पर कविता : क्या क्या देखे जमाने में

बदलते हुए देश दुनिया समाज और लोगों पर कविता : क्या क्या देखे जमाने में

कविता
क्या क्या देखे जमाने में,
क्या-क्या देखे जमाने में,
हम तुम्हें क्या-क्या बतायें,
लगी तन-मन में चोट कितनी,
तुम्हें कहाँ-कहाँ दिखायें।

किस-किसने हमें दर्द दिये,
किसके तुम्हें हम नाम बतायें,
सारे लोग हैं मेरे अपने,
किनका हम नाम छुपायें।

संयुक्त परिवार को टुटते देखा,
माँ बाप को झुकते देखा,
बेटा-बहु निकल गये नालायक,
माता-पिता को बिलखते देखा।

भाई-भाई को लड़ते देखा,
आपस में कट, मरते देखा,
नहीं रहा अब वो प्रेम भाईचारा,
मानवता को सिसकते देखा।

बंदर-भालू को नाचते देखा,
मूर्ख को कथा वाचते देखा,
खत्म हो रहा सामाजिक सौहार्द,
इंसान इंसान को छाँटते देखा।

कितना बदल गया अब इंसान,
इसका गिर गया अब मान,
खत्म हो रही इंसानियत जहाँ से,
"अकेला"ने लोगों का दम घुटते देखा।
अरविन्द अकेला

बदलते हुए समाज की सच्चाई बयान करती कविता : नहीं रही अब वो बात पहले की

कविता

नहीं रही अब वो बात पहले की
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अब बिक गये लगभग सभी पत्र,
बिक गये अधिसंख्य पत्रकार,
बिककर जी रहे मजे से,
बेफिक्र चला रहे अपनी सरकार।

अबतक जो भी बिके नहीं,
खा रहे वे दर-दर ठोकर हजार,
दो जून की रोटी नसीब नहीं उनको,
हो गया उनका जीवन बेकार।

नहीं रही अब वो बात पहले की,
जो कभी दिखा करती थी,
पहले थी निर्भीक पत्रकारिता,
जो था समाज का दर्पण,आधार।

पत्रकारिता थी एक मिशन,
राष्ट्र सेवा का था आधार,
नहीं किसी से कुछ लेते थे,
करते थे सपना साकार।

आज के पत्रकार करते मनमानी,
लगाते हैं अब अपनादरबार,
करते हैं जो प्रेम-भक्ति उनकी,
छपता खूब उनका समाचार।
अरविन्द अकेला

बदलते हुए देश दुनिया पर हिंदी कविता : कर रहे देश की इज्जत तार-तार

कविता
बहुत हो गये अपने देश में गद्दार
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बहुत हो गये अपने देश में गद्दार,
कर रहे देश की इज्जत तार-तार,
रहते,खाते वे अपने देश में,
गाते वे दुश्मन के गुण हजार।
बहुत हो गये...।

कोई हमपर सांस्कृतिक चोट पहुँचाते,
कोई करते हमारे देवता पर प्रहार,
कोई मेरे देश के दुश्मन से मिलकर,
दिलवाते हमें करारी हार।
बहुत हो गये...।

हमारे यहाँ कई सफेदपोश हैं ऐसे,
जिनके हैं देश-विरोधी विचार,
मिलते ये आतंकी संगठनों से,
पर कभी नहीं कहलाते ये गुनाहगार।
बहुत हो गये...।

कुछ गद्दार हिन्दु को आतंकी कहते,
खुद को बताते देश का वफादार,
अब तो जागो मेरे देश के नौजवानों,
जागो मेरे देश के पहरेदार।
बहुत हो गये...।

ऐसे लोगों को पहचानो जनता,
जो कर रहे देश पर जुल्म,अत्याचार,
दे दो इनको वोट से चोट,
या कर दो इनका समूल संहार।
अरविन्द अकेला

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बदलते हुए पारिवारिक सदस्यों पर कविता : एक पिता का अपने पुत्र के नाम पर एक कविता

तुम सदा रहो मस्त,खुशहाल
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कर रहा हूँ ईश्वर से यह विनती,
सदा रहो मस्त, खुशहाल,
नहीं कभी हो दुख,भय कभी,
सदा भरी रहे तेरी टकसाल।

मिले तुम्हें गुणवान धर्म पत्नी
सदा रखे वह तेरी ख्याल,
बनी रहे माता-पिता की कृपा,
नहीं हो कभी शिकवा, मलाल।

रहो जीवनभर मंगल, कुशल,
नहीं हो कभी जीवन में बुरा हाल,
पढ़ो लिखो सदा आगे बढ़ो,
जीओ सुखद,स्वस्थ सौ साल।
अरविन्द अकेला

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