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कहानी शिवदासी आस्था और अनास्था पर कहानी Shivdasi Hindi Story

शिवदासी आस्था, अनास्था और ईश्वर में विश्वास पर कहानी Shivdasi Hindi Story

कहानी "शिवदासी"
एक झटके से स्कार्पियो रूक गयी,
शिवी पूरी फैमिली के साथ शहर से करीब बीस किलोमीटर आगे स्वयं भू शिवलिंग के दर्शन करने जा रही थी!
आज सावन का दूसरा सोमवार था! एक दिन पहले से ही पति के मनवरे कर रही थी!
पति समीर को भी शिवी को सताने में मजा आता था! शिवी ये बात जानती थी की समीर उसे कभी मना नही करेगा, पर फिर भी, उसे पति के भगवान के प्रति उदासीनता पता थी!
ये नही की समीर को भगवान प्रति आस्था नही थी!
समीर भगवान पर आस्था तो रखता था, पर ढोंग नही, करता था!
अब क्या हुआ समीर पर शिवी झुंझलायी, आपके न नुकुर की
वजह से ये स्थिति बनती है!
अरे अब ये लो इसमें भी मेरी गलती "मैने तो गाड़ी को मना नही किया बढने के लिए,
मम्मा पानी छोटी बिटिया बोली, लो अब यही बाकी था!
अरे तो इतनी क्या जल्दी थी, एक बाॅटल रख लेती, समीर ने व्यंग्य किया!
पास में तो था, रोना आ गया शिवी को, बात बिगडते देख समीर ने बात सम्भालने की कोशिश की, चलो बच्चों चलते है!
पानी की तालाश में,
कुल मिलाकर सात बच्चे थे! सारे बच्चे गाड़ी से बहार आ गये!
पर शिवी मुहं फुलाकर बैठी रही"
समीर ने नजर दौडाई पर कोई नजर न आया! कुछ धान के खेत थे! जो "बरिश के पानी से भरे हुए थे!
सभी सडक से उतर कर ढलान की ओर बढ़ गये!
नीचे पहाड़ी थी, और एक मंदिर था, जिसकी पातका दिखाई दे रही थी! सबको आश्चर्य था! शहर से इतनी पास मंदिर और हमें पता नही, शिवी,,,, शिवी,, समीर जोर से आवाज लगाने लगा"
शिवी के कानों में समीर की आवाज पहुंचीं, तो किसी अशंका
से वो घबरा गयी "वो गाड़ी से उतरकर झटपट, ढलान की ओर दौड पडी, जिधर से समीर की आवाज आयी थी!
"शिवदासी" आस्था, अनास्था और ईश्वर में विश्वास पर कहानी Shivdasi Hindi Story

Shivdasi शिवदासी

सामने समीर और बच्चे सुरक्षित खडे थे,,, उन्हें सुरक्षित देखकर शिवी की जान में जान आयी!
हे शिव, शिवी के मुहं से अनायास निकल गया!
सामने नजर पडते ही शिवी हर्षित हो उठी, उसका चेहरा खिल उठा" देखा जहाँ आस्था होती है वहाँ मार्ग खुद ही मिल जाते हैं!
हां ये तो है! अब समीर ने तर्क करना ठीक नही समझा!
सब मंदिर की ओर बढ गये!
देखने में मंदिर बहुत प्रचीन प्रतीत हो रहा था!
मंदिर के अंदर कदम रखते ही, शिवी को महसूस हुआ वो पहले यहाँ आ चुकी है! अंदर शिव जी पांच पिडियों में विराजमान थे!
जल मिल जाता तो अर्पण कर देते जोडे से, शिवी बोली,
जल की तालाश में सब बाहर आ गये!
हा मामी छुटकी को प्यास भी लगी है! हम सबका काम भी हो जायेगा! मंदिर के पीछे पहुंचते ही, कुछ आवाजें सुनायी, दी,
लगता है कोई है, सब उसी ओर बढ़ गये,!
कुछ ग्रामीण महिलायें घड़े में पानी भर रही थी! जो मंदिर की तलहटी में चालीस फुट नीचे कुंड में था!
दस मिनट में सब कुडं के पास पहुंच गये!
निर्मल जल की धारा गौमुख से निकल रही थी! शिवी ने एक महिला से विनती की जल अभिषेक के लिए घड़ा दे दे, उस महिला ने खुशी से घड़ा उसकी ओर बढा दिया!
छुटकी ने अंजुरी भरकर पानी पी ही रही थी की भानजे नील की की आवाज गूंजी, मामा आप सब लोग जल्दी आओ देखो यहाँ झरना है! शिवी तुम जल लेकर जल्दी ऊपर आओ, समीर सारे बच्चों के साथ सीढियाँ चढ ऊपर चले गये "
शिवी ने इधर उधर नजर दौडाई, सूर्य देव नजर न आये! कुंड के आस पास बहुत सारे खम्बे जमीन में धंसे हुऐ थे! देखने पर ऐसा लग रहा था! जैसे कोई नगर जलजला आने से भूमिगत हो गया था! बस एक शिव मंदिर ही बचा था! बाकी सब धरती में समा गया था!
वो महिलाये भी ऊपर जा चुकी थी! अब किसी की आवाज भी नही सुनायीं नही,दे रही थी!
वातावरण कुछ बदला सा लग रहा था!
शिवी ने झटपट जल लेने में भलाई समझी,
घडा जल में डुबाया ही था! की उसे महसूस हुआ की किसी ने उसके हाथों को छुआ!
उसकी नजर जल पर पडी, तो वो चौंक गयी! उसका प्रतिबिंब पानी में नजर आया, वो भयभीत हो गयी, और तेजी से घडा उठाकर मंदिर की ओर दौडी "उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे पीछे दौड रहा है!
मंदिर में कदम रखते ही उसका मन शांत हो गया! समीर और बच्चे सब वही थे!
और समीर कही से वेलपत्र भी ढूँढ लाया था!
जलभिषेक कर घड़ा उन महिलाओं को सौंप, शिवी ने शिव जी को धन्यवाद किया! और मंदिर से बाहर आ गयी!
पर उसका मन जाने क्यू अशंकित था!!
कृमश:
लेखिका" रीमा महेंद्र ठाकुर "
रानापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत
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