राह चलते वो यों जो मिली— कविवर उदय नारायण सिंह की प्रेम कविता
कविवर उदय नारायण सिंह वरिष्ठ कवि और साहित्यकार हैं। कविता से आपका गहरा जुड़ाव है। मूलतः मुक्त छंद आपको प्रिय है। आपकी कविताएँ रहस्यवादी होती हैं, परंतु युग- बोध का स्वर भी निपुणता से गुंभित रहता है। इसीलिए साहित्य मनीषी, प्रणय गीतों के बेताज बादशाह एवं मूर्धन्य कवि, साहित्यकार डाॅ शिवदास पाण्डेय ने कहा था -'उदय जी की कविताएँ समकालिक कम और सम्पूर्ण कालिक ज्यादा होती हैं। साहित्याकाश के मार्तण्ड तथा शिखर पुरुष डाॅ महेन्द्र मधुकर ने कहा कि उदय जी की रचना में छठी इन्द्रियों का मुखर -विलास अनायास दृष्टिगोचर होते हैं। बज्जिका एवं हिन्दी के समर्थ रचनाकार ज्ञानवृद्ध वरिष्ठ कवि और नवगीत के पुरोधा डाॅ शारदाचरण जी का कहना है कि 'भाव, अर्थ और शब्द -शिल्प की सहजान्विति उदय जी की रचना के शाश्वत -स्वर तथा प्राण- तत्व होते हैं।
तो आइए ! उनकी यह कविता -'वो यों जो मिली' को उन्हीं के स्वर और सुर में सुनिए—
राह चलते वो यों मिली— प्रेम रस कविता
राह चलते वो यों जो मिली-वो यों जो मिली
राह चलते वो यों जो मिली,
मौन पड़ी थी हर एक गली।
कोमल पाटल पंखड़ियों-सी,
नजरें थीं उसकी बड़ी भली।
था विहग सरसता तोड़ रहा,
किसलय था कुछ -कुछ डोल रहा।
मंद्र कंठ की सरस रागिनी,
थी नवल सोम -रस में भीगी।
अलकों के खम कुछ थे बिखरे,
रक्ताभ अधर कुछ खुले,खिले।
कानों में बाली झूल रही,
बिलकुल रति सी वह मुझे लगी।
अति पावन थी उर -छवि उसकी,
कुसमित कली सी उसकी हँसी।
कुछ दूर हुई फिर रही खड़ी,
यह अदा बहुत ही लगी भली।
राह चलते वो यों जो मिली।
सादर, सप्रेम भेंट --
रचना - सर्वाधिकार सुरक्षित
रचनाकार -
उदय नारायण सिंह
मुजफ्फरपुर, बिहार
6200154322
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1 टिप्पणियाँ
कमाल लिखना नाइंसाफी होगी, लाजवाब है भाई।
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