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अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर एक कविता|International Men's Day|कविता

पुरुष दिवस पर कविता

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अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर एक कविता

International Men's Day Poetry in Hindi

मैं पुरुष हूँ
विधाता की हूँ रचना
मैं नारी का अभिमान हूँ,
हाँ मैं एक पुरुष हूँ!
मन की बात मन में रख
ऊपर से हरदम खुशमिजाज़ हूँ
माँ की ममता
पिता का स्वाभिमान हूँ,
हाँ मैं एक पुरुष हूँ!
मैं जीवन में आया जबसे
अपेक्षा के बोझ से लदा हरदम
पिता के फटे जूते से लेकर
बहन की शादी के
सपनों का आधार हूँ
मैं उम्मीदों का पहाड़ हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ!
थकान हो गई तो क्या
पाँव रुक गए तो क्या
मुझको चलना है हरदम,
मैं बिटिया की गुड़ियों का खरीदार हूँ
मैं आशाओं का मीनार हूँ
हाँ मैं पुरूष हूँ!
रो मैं सकता नहीं
कह मैं सकता नहीं
डर अपना यह
मैं सह सकता नहीं
ऊपर से बहुत अभिमानी
पर अंदर से निपट असहाय हूँ
मैं परिवार का एतबार हूँ,
हाँ मैं पुरुष हूँ!
पत्नी की इच्छा
माँ के सपने
बच्चों की ख्वाहिशें
पिता के गुस्से का शिकार हूँ,
हाँ मैं पुरुष हूँ!
आदर देता मैं हरदम
प्यार लुटाता हूँ हर इक कदम
फिर भी कुछ हैवानों के कारण
मैं नफरत का शिकार हूँ,
हाँ मैं पुरुष हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ
लेखक/लेखिका-अज्ञात
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