शहीद दिवस पर कविता और शायरी Shahid Diwas Par Kavita aur Shayari
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू शहीदों पर कविता
भारत माता की जय, वंदे मातरम
जय हिंद, जय जय हे भारत देश।
“जय भगत सिंह, जय सुखदेव, जय राजगुरु,
शहादत की बात, आपने नए ढंग से की शुरू।
कौन भूल सकता कभी, आप शहीदों के नाम?
शहादत दिवस है, आपको कोटि कोटि प्रणाम।”
शहीदी दिवस पर शहादत को नमन
शहीदी दिवस पर,शहादत को, नत नमन,
करना चाहता आज, भारत का जन जन।
ऐसे ही वीर सपूतों के बलिदान के कारण,
गुलज़ार है आज, अपना यह सारा चमन।
शुकदेव और राजगुरु के साथ, हंसते हंसते,
भगत सिंह ने किया था, फांसी का वरण।
शहीदी दिवस पर…
शहीदी दिवस पर,शहादत को, नत नमन,
करना चाहता आज, भारत का जन जन।
ऐसे ही वीर सपूतों के बलिदान के कारण,
गुलज़ार है आज, अपना यह सारा चमन।
शुकदेव और राजगुरु के साथ, हंसते हंसते,
भगत सिंह ने किया था, फांसी का वरण।
शहीदी दिवस पर…
शहीदों पर शायरी | वीरों पर कविता
उस दिन बिलख रही थी धरती माता नीचे,
और ऊपर से, रो रहा था यह नील गगन।
क्या कहना है वीर भगत के देश प्रेम को?
असंभव कर पाना, शब्दों में इसका वर्णन।
मातृभूमि के लिए जैसे जन्म हुआ उनका,
मातृभूमि को, समर्पित रहा, सारा जीवन।
शहीदी दिवस पर…
भगत नाम से ही गोरे खौफ खाते थे सदा,
नींद हराम रहती उनकी, और बेचैन मन।
काश हम भगत सिंह के, दर्शन कर पाते,
सर पे जिनके बंधा रहता था सदा कफ़न।
देश को गर्व है, ऐसे वीर सपूतों के ऊपर,
शहादत से माटी महकती है, जैसे चंदन।
शहीदी दिवस पर…
शहीदों को श्रद्धांजलि देना, गर्व हमारा,
सर झुकता, मन करता माटी का वंदन।
तीनों महावीर, फांसी पर लटक गए थे,
करते हुए अपने वतन को सादर नमन।
उनके बलिदान से, सदा गुलज़ार रहेगा।
तिरंगा प्यारा का यह अलबेला गुलशन।
शहीदी दिवस पर…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार
और ऊपर से, रो रहा था यह नील गगन।
क्या कहना है वीर भगत के देश प्रेम को?
असंभव कर पाना, शब्दों में इसका वर्णन।
मातृभूमि के लिए जैसे जन्म हुआ उनका,
मातृभूमि को, समर्पित रहा, सारा जीवन।
शहीदी दिवस पर…
भगत नाम से ही गोरे खौफ खाते थे सदा,
नींद हराम रहती उनकी, और बेचैन मन।
काश हम भगत सिंह के, दर्शन कर पाते,
सर पे जिनके बंधा रहता था सदा कफ़न।
देश को गर्व है, ऐसे वीर सपूतों के ऊपर,
शहादत से माटी महकती है, जैसे चंदन।
शहीदी दिवस पर…
शहीदों को श्रद्धांजलि देना, गर्व हमारा,
सर झुकता, मन करता माटी का वंदन।
तीनों महावीर, फांसी पर लटक गए थे,
करते हुए अपने वतन को सादर नमन।
उनके बलिदान से, सदा गुलज़ार रहेगा।
तिरंगा प्यारा का यह अलबेला गुलशन।
शहीदी दिवस पर…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार
शहीद दिवस पर कविता शायरी
शहीद दिवस
तुझे नमन क्रांतिकारी वीर शहीदों,
आजादी हेतु किया जीवन अर्पण।
राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा हेतु
अंग्रेजों को दिखाया शान का दर्पण।।
आजादी का बीरा महात्मा गाँधी उठाए,
संग अग्रणी भगत सुखदेव राजगुरु आए।
किया एहसास सीधाई से आजादी नहीं संभव,
सुभाषचंद्र संग क्रांतिकारी दल एक बनाए।।
हुआ बँटवारा दो भागों मे अब दल,
अहिंसात्मक आंदोलन नरम दल कहलाया।
खड़ा हुआ तब हिंसात्मक आंदोलन,
अंग्रेजों को था भयाक्रांत से दिल को दहलाया।।
गुलामी की बेड़ी तोड़ने को आतुर,
अपना जीवन राष्ट्र को कर दिया अर्पण।
धन्य भगत राजदेव और सुखदेव,
नवजीवन किए हिन्दराष्ट्र को समर्पण।।
लिखा नाम तुम्हारा स्वर्ण अक्षरों में,
अधीनता तोड़ने हेतु स्वयं समर हो गए।
देशवासियों को तुमलोग देकर सुख,
तुमलोग विश्व में शहीद अमर हो गए।।
तुम तो थे सच्चे मन से देश भगत,
राजगुरु भी थे जिसके संग साथ में।
टिक सकते कैसे थे वे अंग्रेजी सैनिक,
सुख देने वाले देव हों जिसके हाथ में।।
किंतु देशद्रोहियों से घिरा आज है भारत,
फिर से तुमको एक बार यहाँ आना होगा।
देशद्रोहियों से भारत को मुक्त करके,
द्रोहमुक्त शांतियुक्त राष्ट्र बनाना होगा।।
वह संयम शक्ति तुम दे दो हमें भी,
हम भी राष्ट्र सेवा में कुछ काम आएँ।
देशधर्म पर हम भी बलि बलि जाएँ
देशधर्म में हम भी अमर हो जाएँ।।
हमारा जीवन है तेरा सदा ही आभारी,
तन मन अपना करूँ राष्ट्र को अर्पित।
शब्धरूपी पुष्प तेरे चरणों में चढ़ाकर,
अरुण दिव्यांश का है श्रद्धांजली समर्पित।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560
विषय: शहीद दिवस
शीर्षक: वीरों की शहादत
दिनांक:30 जन, 2023
दिवा : सोमवार
वीरों की शहादत को,
हरगिज न भूलाएँगे।
कसम है तिरंगे की,
झंडा न झुकाएँगे।। वीरों की -----
पूर्वजों की अमानत को,
हरगिज न गँवाएँगे।
अपना प्राण देकर भी,
उसको हम बचाएँगे।। वीरों की -------
बदन है वतन का ये,
फिर क्यों हम कतराएँगे।
गर्व से कहते भारतवासी,
भारतीय ही कहलाएँगे।। वीरों की -------
आएँगे यदि दुश्मन जो,
वापस फिर न जाएँगे।
सबको धूल चटाए हैं फिर,
धूल ही हम चटाएँगे।। वीरों की -------
भारत देश आजाद है और,
आजादी ही चलाएँगे।
बहुत जुल्म सहा है भारत,
अब न सह पाएँगे। वीरों की -------
राष्ट्रगीत औ राष्ट्रगान को,
गर्व से हम ये गाएँगे।
एक शहादत बदले में हम,
दस को मार गिराएँगे।।
वीरों की शहादत को,
हरगिज न भूलाएँगे।
कसम है तिरंगे की,
झंडा न झुकाएँगे।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
शहीद दिवस (23 मार्च)
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ना जाने किस मिट्टी से बनते हैं यह
ना जाने कौन सी चक्की का आटा खाते हैं यह
ना जाने कौन सी घुट्टी पीते हैं यह
जान की परवाह नहीं किसी बंधन में बंधते नहीं
प्यार है तो सिर्फ भारत मां से
शान के लिए उसके जीते मरते हैं यह सब,
यह शहीद ऐसे ही होते हैं।
माता-पिता पत्नी बच्चे भाई-बहन
यह रिश्ते सारे निभाते हैं,
पर कहते हैं हमेशा अब से करता हूं
पर भारत मां से सबसे ज्यादा करता हूं।
जननी मां को कहते हैं- लेकर जन्म अगला
तेरा मैं कर्ज चुकाने आऊंगा
पर इस जन्म मैं भारत मां का कर्ज चुकाऊंगा।
सोच सोच गर्वित हूं मैं
खुदीराम भगत सिंह राजगुरु
सुभाष शिवाजी की धरती है यह
मैं भी उस मिट्टी में जन्मी
जिसमें उनकी खुशबू है।
नमन करने को हम आज
23 मार्च को शहीद दिवस मनाते हैं
यह छोटी सी श्रद्धांजलि है
मां के उन वीर सपूतों को।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना
शहीदी दिवस पर कविता | सेना के शौर्य पर कविता
अमर शहीदों की गाथा का गुण गान करूं।
एक नहीं अनेक हुए शहीद- मैं उनका बखान करूं।।
देश की रक्षा के लिए जीवन अपना बलिदान करूं।
यही सिखाया माँ ने, औरों की रक्षा किया करूं।।
धन्य हुई वह कोख जिस, कोख का वंदन करूं।
जब भी जन्म हो मेरा- हर बार भारत माँ का लाल बनूं।।
भारत का लाल कहला बेटा मैं तुझ जैसा जनूं।
जब भी हो जन्म मेरा मैं कोख तेरी चूना करूं।।
हर घड़ी हर पल मैं तेरा इन्तजार किया करूं।
तुम खेलों रंगों से होली, मैं खून से होली खेलूं।।
घर में तुम दिप जलाते हो मैं बारूदी सुरंग बिछादूं।
शहीद दिवस पर मैं कैसे? अहसान चूकता करूं।।
पुष्पा निर्मल
एक नहीं अनेक हुए शहीद- मैं उनका बखान करूं।।
देश की रक्षा के लिए जीवन अपना बलिदान करूं।
यही सिखाया माँ ने, औरों की रक्षा किया करूं।।
धन्य हुई वह कोख जिस, कोख का वंदन करूं।
जब भी जन्म हो मेरा- हर बार भारत माँ का लाल बनूं।।
भारत का लाल कहला बेटा मैं तुझ जैसा जनूं।
जब भी हो जन्म मेरा मैं कोख तेरी चूना करूं।।
हर घड़ी हर पल मैं तेरा इन्तजार किया करूं।
तुम खेलों रंगों से होली, मैं खून से होली खेलूं।।
घर में तुम दिप जलाते हो मैं बारूदी सुरंग बिछादूं।
शहीद दिवस पर मैं कैसे? अहसान चूकता करूं।।
पुष्पा निर्मल
सुखदेव भगत सिंह और राजगुरु के बलिदान दिवस पर कविता
मेरे देश की मिट्टीभगत सिंह, मंगल पाण्डे सरिखों की मिट्टी।
लाखों के खून से सनी है माँ की यह मिट्टी।।
नई नवेली दुलहनों के सिंदूर से सनी है यह मिट्टी।
फूटी चुड़ियों से आच्छादित है इस देश की मिट्टी।।
जलियावाले बाग की लाल-लाल है अब भी मिट्टी।
मन हीं जब बँट गया, अब कितनी बटेगी ये मिट्टी।।
दानव पुत्र को कोख में रख माँ खाती रहती है मिट्टी।
कैलाश चूर्ण-विचुर्ण, मानसरोवर की बर्फिली मिट्टी।।
पञ्च तत्वों से हट गई है संभवत: धरा-धाम की मिट्टी।
कब्रों में दफन वीर-बाँकुणे, अश्रुपूरित देश की मिट्टी।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार
आज सुखदेव भगत सिंह और राजगुरु के बलिदान दिवस पर प्रदत्त बहर में मेरी रचना
सयाने कहते हैं
लाल भारत सुहाने कहतेहैं।।
लोग उनको दिवाने कहते हैं।।
भक्ति का भाव रहे सीने में।
वीर उनको जमाने कहते हैं।।
ठोकरें खाकर दी आजादी।
कीर्ति उनकी सुनाने कहते हैं।।
गर्व होता उनके जीवन से।
सीख सबको बताने कहते हैं।।
जान जाये न कभी डरते थे।
तब हँसौड़ा सयाने कहते हैं।।
बिनोद कुमार "हँसौड़ा" दरभंगा(बिहार)२३/०३/२०२१
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