मुस्कुराहट पर कविता | Muskurahat Par Kavita | Poem on Smile in Hindi
विषयः विषयः मुस्कुराहट
16 नवंबर , 2022
दिवसः बुधवार
हृदय जब है यह खुश होता,
मुखड़े पे मुस्कुराहट आती है।
हर कुछ है तब सुन्दर दिखते,
हर दृश्य तब मनोरम भाती है।।
मुस्कुराहट जीवन प्रदान करती,
मुस्कुराहट आयु वृद्धि में प्रवीण।
मुस्कुराहट से दशा दिशा सुधरे,
मुस्कुराहट बिन आयु भी क्षीण।।
उदासी छाती जब भी चेहरे पर,
मुस्कुराहट कभी आ नहीं पाती।
सुन्दर सपने भी अधूरी लगती,
तब मन को कुछ भी नहीं भाती।।
जीवन को जीना है यदि सुख से,
हँसना खेलना मुस्कुराना सीखो।
जियो दिल खोलकर आजीवन,
बैर खोकर हाथ मिलाना सीखो।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार
Muskurahat Shayari | अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस शायरी
अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस | अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस
मुस्कुराहट ग़ज़ल
बेला, सुम्बुल, गुलाब देता है।
जिन्स वो लाजवाब देता है।
फूल झड़ते हैं उस के होठों से।
जब वो हँसकर जवाब देता है।
मुस्कुराते हैं ह़ज़रत ए वाइज़।
साक़िया जब शराब देता है।
तिश्नगी भी उसी ने दी हम को।
वो ही पीने को आब देता है।
आग लगती है ख़ाना ए दिल में।
कोई जब भी सराब देता है।
जो भड़कता है बदगुमानी से।
चैन कब वो शहाब देता है।
जिसको चाहे फ़राज़ दुनिया में।
रिज़्क़ वो बेहिसाब देता है।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
International Day of Happiness Quotes | Muskurahat Shayari
ग़ज़ल
मुस्कुराकर आज दिल की हर कली कहने लगी।
आपको अपना बना लूँ ज़िन्दगी कहने लगी।
रौशनी डालो कभी तुम इस सियासत पर ज़रा
थाम कर मेरा क़लम यह शायरी कहने लगी।
चाँद जैसी आपकी यह प्यारी सूरत देखकर।
आप को आदाब झुक कर चाँदनी कहने लगी।
आशिक़ी में आप की कुछ ह़ाल ऐसा हो गया।
मेरी परछाई भी मुझको अजनबी कहने लगी।
हम भी कायल हैं तुम्हारी शायरी के आज कल।
रोक कर रस्ता मिरा इक सुन्दरी कहने लगी।
क्यों छुपा रक्खा है तुमने ख़ुद को ऐ जाने वफ़ा।
जाम नज़रों से पिला दो तिश्नगी कहने लगी।
रोते - रोते दोस्तों की बेरूख़ी पर आज फिर।
शर्म कुछ तो कीजिए यह दोस्ती कहने लगी।
किस क़दर ज़ुल्मो जफ़ा है मुफ़लिसों पर चार सू।
सर झुकाकर अब ये ख़ुद भी रहबरी कहने लगी।
देख कर पीना पिलाना आज अपना ऐ फ़राज़।
तौबा - तौबा आज बज़्मे मयकशी कहने लगी।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
मुस्कुराकर आज दिल की हर कली कहने लगी।
आपको अपना बना लूँ ज़िन्दगी कहने लगी।
रौशनी डालो कभी तुम इस सियासत पर ज़रा
थाम कर मेरा क़लम यह शायरी कहने लगी।
चाँद जैसी आपकी यह प्यारी सूरत देखकर।
आप को आदाब झुक कर चाँदनी कहने लगी।
आशिक़ी में आप की कुछ ह़ाल ऐसा हो गया।
मेरी परछाई भी मुझको अजनबी कहने लगी।
हम भी कायल हैं तुम्हारी शायरी के आज कल।
रोक कर रस्ता मिरा इक सुन्दरी कहने लगी।
क्यों छुपा रक्खा है तुमने ख़ुद को ऐ जाने वफ़ा।
जाम नज़रों से पिला दो तिश्नगी कहने लगी।
रोते - रोते दोस्तों की बेरूख़ी पर आज फिर।
शर्म कुछ तो कीजिए यह दोस्ती कहने लगी।
किस क़दर ज़ुल्मो जफ़ा है मुफ़लिसों पर चार सू।
सर झुकाकर अब ये ख़ुद भी रहबरी कहने लगी।
देख कर पीना पिलाना आज अपना ऐ फ़राज़।
तौबा - तौबा आज बज़्मे मयकशी कहने लगी।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
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