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Online International Mushaira Barabanki India

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बाराबंकी में ऑनलाइन 162 वाँ  कवि सम्मेलन

बाराबंकी में ऑनलाइन 162 वाँ कवि सम्मेलन।
(जश्ने फूल मियाँ सादिक़)
सह रोज़ा इन्टरनेशनल ऑनलाइन तरही मुशायरा
शेर-ओ अदब की मेयारी और आला क़द्रों की तर्जुमान इन्टरनेशनल ऑनलाइन अदबी तन्ज़ीम
"एवान-ए ग़ज़ल" का
162 वाँ इन्टरनेशनल ऑनलाइन सह रोज़ा तरही मुशायरा
मुशायरा सरपरस्त : नाज़िश-ए शेर-ओ अदब इन्टरनेशनल शायर मोहतरम ज़की तारिक़ साहब बारहबंकवी
मुशायरा सद्र : मोहतरमा मधुबाला श्रीवास्तव साहिबा जोधपुरी
मुशायरा नाज़िम : मोहतरम शरफ़ बारहबंकवी साहब
मिसरए तरह : "करो सच की हिमायत ज़िन्दगी भर"

Best Online International Mushaira

बहुत ही ज़्यादा कामयाब और कामरान इस अज़ीमुश्शान मुशायरे के पसन्दीदा अशआर क़ारेईन की नज़्र हैं!
ज़मीं पर पैर हों और आसमाँ छू
तू पाता रह वो रिफ़अत ज़िन्दगी भर
(ज़की तारिक़ बारहबंकवी)

नबी के ज़िक्र से होती रहेगी
ज़बानों की तहारत ज़िन्गी भर
(फूलमियाँ "सादिक़" सम्भल)

येही है इन्सो जिन की वज्हे ख़िलक़त
करें रब की इबादत ज़िन्दगी भर
(नईम हैदर बाक़री सम्भल)

पए शाहे नबूवत ज़िन्दगी भर
करूँगा दीं की ख़िदमत ज़िन्दगी भर
(मौलाना ज़ाहिद रज़ा बनारसी)

कभी मिलने नहीं आये हैं हमसे
रही उनसे शिकायत ज़िन्दगी भर
(अरुणिमा सकसेना)

वो, नफ़रत का पुजारी रह चुका है
नहीं बदलेगी फ़ितरत ज़िन्दगी भर
(अली हैदर ख़ान जौनपुरी)

मुझे अपना बना करके तो देखो
करूँगा तुमसे उलफ़त ज़िन्दगी भर
(फ़ख़रुददीन "राज़")

हमारे मुल्क की इन सरहदों की
करेंगे हम हिफ़ाज़त ज़िन्दगी भर
(मुबीन "ज़ामिन)

ज़बाने दिल ले अपना कह दे कोई
रही ये मुझको हसरत ज़िन्दगी भर
(रचना निर्मल) 

बस इक दिन झूठ से पर्दा उठाया
चुकाई उसकी क़ीमत ज़िन्दगी भर 
(मधुबाला श्रीवास्तव जोधपुरी)

जो ग़ुरबत में न आये काम उसकी
न कर पाऊँगी इज़्ज़त ज़िन्दगी भर
(विनीता सिंह "विनी")

कलीम अपना बना कर देखियेगा
निभायेंगे मुहब्बत ज़िन्दगी भर
(शाहिद कलीम गंजवी)

बसा कर दिल में तेरी प्यारी सूरत
करूँगी मैं ज़ियारत ज़िन्दगी भर
(ममता गुप्ता "तृषा")

जो दर्दे दिल हैं देते मुझपे उनकी
रहे यूँ ही इनायत ज़िन्दगी भर
(नाज़िश बारहबंकवी मुम्बई)

अदावत ज़हन में जिनके भरी हो
न बदले उनकी आदत ज़िन्दगी भर
(प्यासा अन्जुम कश्मीर)

बनी जिससे भी जोड़ी आपकी है
करो उस से मुहब्बत ज़िन्दगी भर
(फ़िरोज़ सिद्धार्थी)

सफ़र आग़ोशे माँ से है लहद तक
रही ये ज़ीस्त हिजरत ज़िन्दगी भर
(अन्जुम मन्सूरी)

लगालो कितने पहरे इश्क़ पर यूँ
करेगा वो बग़ावत ज़िन्दगी भर
(नीलम शर्मा)

येही देखा है अख़तर ने हमेशा
नहीं जाती है फ़ितरत ज़िन्दगी भर
(अबदुल अज़ीम अख़तर)

नहीं साबित हुआ इल्ज़ाम क्योंकि
वो था राहे सदाक़त ज़िन्दगी भर
(राजकिशोर पाँडे)

फ़क़त ग़ुरबत हुई हासिल जहाँ की
करी हक़ की तिजारत ज़िन्दगी भर
(जितेन्द्र पाल सिंह)

करूँ रब की इबादत ज़िन्दगी भर
फिर आक़ा की इताअत ज़िन्दगी भर
(कमसिन अता)

इसके अलावा मुताद्दिद शोअरा और शायरात ने भी अपने अपने ख़ूबसूरत तरही कलाम पेश किये और भरपूर दाद-ओ तहसीन हासिल की !
ज़की तारिक़ बारहबंकवी

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