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मकर संक्रांति पर शायरी Makar Sankranti Shayari मकर संक्रांति पर कविता Makar Sankranti Kavita

मकर संक्रांति पर शायरी Makar Sankranti Shayari मकर संक्रांति पर कविता Makar Sankranti Kavita

मकर संक्रांति पर कविताएं : मकर संक्रांति का उत्सव
(कविता)

“भारत के महान् पर्व मकर संक्रांति पर मेरी ओर से आप सभी मित्रों को अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाईयां”
मकर संक्रांति पावन पर्व की आई वेला,
तिल गुड़ की चल रही है खूब तैयारी।
बाजारों में भीड़ देखते ही बनती अभी,
लोग जमकर कर रहे सारी खरीददारी।
मकर संक्रांति ………..
सूर्य भगवान कर्क रेखा को छोड़ देते,
मकर रेखा से अपना बंधन जोड़ लेते।
भारत का, यह एक पारंपरिक पर्व है,
सर्द मौसम, लोगों का जोश है भारी।
मकर संक्रांति …………..
कोई कैसे भूल सकता इसकी कहानी,
इसकी यादें कभी होंगी नहीं पुरानी।
उत्साह में कोई कमी नहीं दिखती है,
हंसी खुशी वाली, संक्रांति है प्यारी।
मकर संक्रांति ………….
आसानी से नजर आते नहीं दिनकर,
दिन बीताना चाहते धुंध में छुपकर।
तिल, गुड़ का विशेष महत्व होता है,
तैयारी में व्यस्त घर में पुरुष नारी।
मकर संक्रांति …………..
कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश की,
अनुपम एकता और लगती है न्यारी।
सभी, तिल गुड़ के मधुर लड्डू खाएं,
जग में सबसे सुंदर, संस्कृति हमारी।
मकर संक्रांति …………….
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

मकर संक्रांति २०२२ पर कविताएं Poems On Makar Sankranti

मकर संक्रांति २०२२
आयें लोहड़ी महोत्सव मनायें।
मकर संक्रांति-तिलकुट खायें।
शीतकाल को टाटा-बाये-बाये।
शुभ कार्यों की करते बैठ राय।
गुरुवाणी बलिदान की हो बातें।
जीत सत्य की है सच यह मानें।
दुल्ला भट्टी का करते स्मरण।
शहादत अमरता नहीं मरण।
ढोल नगाड़े मन भर आज बजायें।
गिद्दा भंगड़ा कर हम।धूम मचायें।
अलाव जला कर सब जश्न मनायें।
गजक रेवड़ी दही चिउड़ा भी खायें।
माँ बहनों का भी सम्मान करें सदा।
सभों की खातिर मांगे हम दुआयें।
नूतन वर्ष का स्वागतगान सुनायें।
खुशियों से हम झोली भर लायें।
गले मिल अपनो से दें बधाई।
मंगलमय उत्सव है यह भाई।
सबका मालिक एक है साईं।
आयें लोहड़ी महोत्सव मनायें।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार
k.k.nirmal2009@gmail.com
+919122890297
Makar Sankranti Shayari


मकर संक्रांति पर कविताएं | Makar Sankranti Kavita

पंजाब में लोहड़ी है, आसाम में बिहु,
तमिनाडु में पोंगल पहचान होती है।
मकर संक्रांति महान
हिन्दी कविता
तिल गुड़ से जिसकी पहचान होती है,
वह मकर संक्रांति बड़ी महान होती है।
जोश और उमंग में कोई कमी नहीं है,
चाहे ठंडी हवा बड़ी बेईमान बहती है।
तिल गुड़ से जिसकी…
मीठे होते, तिल और चिवड़ा के लड्डू,
खाकर इसे होठों पर मुस्कान होती है।
घर में जैसे, दूध दही की नदी बहती,
देखकर हमको, दुनिया हैरान होती है।
तिल गुड़ से जिसकी…
पंजाब में लोहड़ी है, आसाम में बिहु,
तमिनाडु में पोंगल पहचान होती है।
धन धान्य से, घर परिवार भरे होते,
हर चेहरे पर झलकती शान होती है।
तिल गुड़ से जिसकी…
बड़ा पावन माना जाता है नदी स्नान,
होठों पे मुरली की मीठी तान होती है।
मकर संक्रांति पर सर्दी का राज होता,
लेकिन इस पर्व में बड़ी जान होती है।
तिल गुड़ से जिसकी...
यह पर्व, भारतीय संस्कृति से जुड़ा है,
प्रकृति भी पूरी तरह मेहरबान होती है।
कभी गुलाबी धूप, कभी ठंडी ठंडी हवा,
हरी हरी घास पर ओस नादान होती है।
तिल गुड़ से जिसकी…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार

मकर संक्रांति पर भक्ति गीत : मकर संक्रांति आई भवानी

“आप सभी मित्रों एवं साथियों को पावन पर्व मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाईयां”
मकर संक्रांति आज आई भवानी,
तिल, गुड़ तुम स्वीकार कर लो!
पूजन विधि मैं न जानूं ठीक से,
मधुर सबका घर संसार कर दो।
मकर संक्रांति………..
जैसे है तिल और गुड़ का नाता,
वैसी डोर जोड़ लो भवानी माता।
सर्दी से बचाओ, कोरोना भगाओ,
भक्तों की नैया तुम पार कर दो।
मकर संक्रांति…………
गुड़ और तिल से भरी लाया थाली,
तेरे शरण से कैसे मां लौटूं खाली?
चरणों में अपने थोड़ी जगह दे दो,
उज्ज्वल भक्तों का संसार कर दो,
मकर संक्रांति………..
मिल जाए जिसको आज तेरे दर्शन,
सफल हो जाए उसका सारा जीवन।
तेरी अनुमति से चलते चांद सितारे,
सपने अपनों के मां साकार कर दो।
मकर संक्रांति…………
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

मकर संक्रांति पर मैथिली गीत : तिला संक्रांतिक पवित्र पाबैन एलई

(मैथिली गीत)
“सभ मित्र आओर प्रियजन के पवित्र पाबैन तिला संक्रांतिक शुभ अवसर पर ढेर रास हार्दिक शुभकामना आओर बधाई।“
तिला संक्रांतिक पवित्र पाबैन एलई,
मिथिला में मचलई धमाल बहिना।
चूड़ा दही के ऊपर गोल गोल लाई,
खाए कए सभ केओ नेहाल बहिना।
तिला संक्रांतिक………..
तिल गुड़ से भरल अहि हाट बाजार,
समाज मे पसरल छै मधुर व्यवहार।
भाए सभ जाईत अहि बहिन केर घर,
प्रतीक्षारत बहिन छै खुशहाल बहिना।
तिला संक्रांतिक………….
कतहु बनैत छैक आलू कोबी तरकारी,
कुनो आंगन मे आलू पानीरक तैयारी।
देशी गुड़क लाई खाईत खाईत घर मे,
नेना भुटकाक ठोर भेलै लाल बहिना।
तिला संक्रांतिक…………
सर्दिक दिन मे जेना गर्मि केर एहसास,
तिला संक्रांतिक सभ किछु खासमखास।
युवा युवती केर तए बाते छै बड़ गजब,
बुढबो ठोकैत छै ताल पर ताल बहिना।
तिला संक्रांतिक …………..
हम प्रमाणित करैत छी जे ई रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित अहि।
रचनाक सर्वाधिकार कवि/कलमकार केर पास सुरक्षित थिक।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर(मधुबनी)/मिथिला धाम

मनहरण घनाक्षरी : संक्रांति फिर आई है, ख़ुशी मन में छाई है

संक्रांति फिर आई है, ख़ुशी मन में छाई है
शीत ऋतु जाने लगी, आग तो जलाइए

पतंग आज उड़ रही, गगन में भिड़ रही
काटा की आवाज आई, आनंद उठाइए

कई तेरे नाम यहाँ, एक तेरा काम यहाँ
सूरज प्रखर होगा, सरदी भगाइए

गुड़ तिल लाडू आए, रेवड़ी गज़क भाए
दान पुन सब कीजे, गीत सब गाइए

बच्चों की आई है टोली, सूरत लगती भोली
उनके हाथों में भेंट, खाली न लौटाइए

खीर पूरी साग बना, देवों का भी भाग बना
हरा चारा गौ माता को, प्यार से खिलाइए

पिठ्ठू का भी जोर देखो, बालकों का शोर देखो
सब में है जोश अब, गेंद से तो मारिए
श्याम मठपाल, उदयपुर

आया मकरसक्रांति त्यौहार : मकर संक्रांति पर कविता

आया मकरसक्रांति त्यौहार
आया मकरसंक्रांति त्यौहार
साल का प्रथम त्यौहार
आया मकरसंक्रांति त्यौहार
सूर्य भगवान करेंगे प्रवेश
मकर राशि में आज
दही, चुरा, खिचड़ी, तिलकुट
का आज होगा समावेश
मकर नहाने चली टोलियां
झुंड के झुंड है आज
कोई चला गंगा सागर
तो कोई गंगा की धार
आया मकरसक्रांति त्यौहार
सबेरे सबेरे सब नहा धो कर
खाए गुड़ चुरा खिचड़ी तिलकुट
बच्चें खुशी से झूम रहें
मना रहें पतंग बाजी का त्यौहार
कोई लोहड़ी मना झूम रहें
...आया मकरसंक्रांति त्यौहार
..निर्दोष लक्ष्य जैन

मकर संक्रांति पर कविता Makar Sankranti Kavita Hindi

मकर संक्रांति पर्व
लायी सुख, शांति, हर्ष
अंगना आए हैं रवि
जग में उल्लास है।

डुबकियां लगा रहें
खुशियां भी मना रहें
पावन नदियों तट
भक्त तो बिंदास है।

छंटा भी कुहासा अब
भूल रहें गम सब
खा रहेंं तिलवा, लाई
दिवस भी खास है।

पतंग गगन उड़े
चहुं दिशा सज पड़े
मुरझाए मुख खिले
रिश्ता आसपास है।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार


makar sankranti image

मकर संक्रान्ति पर कविता : बसंत ऋतु का प्रथम संदेश लाया

समस्त माताओं बहनों और बंधुजनों को मकर संक्रान्ति और लोहड़ी का हृदयतल से ढेरों शुभकामनाएँ। मकर संक्रान्ति के उपलक्ष्य में एक रचना का सादर प्रयासः
मकर संक्रान्ति
बसंत ऋतु का प्रथम संदेश लाया,
साथ लाया त्यौहारों की क्रान्ति।
लाई तिलवा तिलकुट दही चूरा,
भूरा चीनी लाया मकर संक्रान्ति।।
चढ़ते ही यह नव गौरवर्ष में अब,
पहले त्यौहार का पहल करता है।
आ रहा हिन्दू नववर्ष भी है आगे,
हिन्दू जागरण हृदय में भरता है।।
स्नान दान की यह पुण्यित बेला,
अन्जाने हुए पापों को मिटाना है।
ले संकल्प पुण्यित कर्म के अब,
मन से पापों को दूर भगाना है।।
दिन में खाओ दही चूरा तिलकूट,
शाम में खिंचड़ी भरपेट खाना है।
करो इन्तजार गणतंत्र दिवस अब,
देशभक्ति गीत समारोहों में गाना है।।
होंगे उत्तरायण आज से आदित्य,
मकर राशि में प्रवेश कर जाना है।
शरद ऋतु की अब हो रही बिदाई,
बसंत ऋतु स्वागत में जुट जाना है।।
शरद ऋतु ने हमें बहुत ही सताया,
ट्राउजर स्वेटर बंडी कोट पहनाया।
बहुत ही सताया बहुत अलसाया,
किन्तु धैर्य संयम का मार्ग दिखाया।।
मकर संक्रान्ति शरद् का दे रहा बिदाई,
बसंत ऋतु के स्वागत मे खड़े द्वार।
जाड़े को विदा और गर्मी से बचाने हेतु,
बसंत ऋतु का अब करता है इन्तजार।।
एक ही विनती अब तुमसे हमारी,
दूर करो संक्रमण हे मकर संक्रान्ति।
हम सब जन को दे दो अब सद्बुद्धि,
रोग दुःख पीड़ा संग दूर करो भ्रान्ति।।
पूर्णतः मौलिक एवं 
अप्रकाशित रचना।
श्री अरुण दिव्यांश जी की ओर से एक नई खुशखबरी शीघ्र आ रहा है...
अमर विश्व साहित्य हिंदी उर्दू साहित्य संसार
अरुण दिव्यांश 9504503560

भोजपुरी मकर संक्रांति खिचड़ी Bhojpuri Makar Sankranti

मकर संक्रांति (खिचड़ी) पर स्पेशल ए गो भोजपुरी गीत

मकर संक्रांति (खिचड़ी)
स्पेशल ए गो गीत
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आरे काल्हे बाटे खिचड़ी तनिका बनऽइह आलूदम हो
ऐ चिंटूआ के माई अब कम होई जाई ठंडा के मौसम हो

ऐ चिंटूआ के माई..... 2


जयीसे बजी सात ओसे पहिले कर द अंगना लिपाई
आठ बजत बजत सभी
लङीकन के दे द नहवाई
तुहु नहा धोआ के रहीह फिट
बजावत पायल छमाछम हो
ऐ चिंटूआ के माई ...2

दिनोंदिन अब तिल तिल घटते जाई जवन पङत रहे बड़ा ठंडा पाला
तिल गुङ के नेवान करऽ आ कराऽ द सभके चाभऽ दही चिउड़ा के निवाला
आलूदम भले तनिका तींत बन जाई बाकिर ओहमें निमक डलीह कम हो
ऐ चिंटूआ के माई..... 2

सुनि ला का खूँटातोड़ बाबा जी खूबे खालन तिलवा लाई
ओकरा बादो डेढ किलो दही चिऊरा खाके मांगेलन विदाई

ऐहसे खाये पिये में तनिको कंजूसी तुहु जिन करीहऽ
बोल बोल हर हर बम बम हो
ऐ चिंटूआ के माई...... 2

आरे काल्हे बाटे खिचड़ी तनिका बनयीह आलूदम हो
ऐ चिंटूआ के माई अब धीरे धीरे कम होखे लागी ठंडा के मौसम हो
ऐ चिंटूआ के माई..... 2
गीतकार :कवि खूँटातोड़

मकर संक्रांति आयो भाई : मकर संक्रांति पर कविताएं

अब ठंडी दूर भगायो भाई
तिल तिल तिल कर अब ठंडी दूर ही भागेगा
इसलिए अब तनिक भी मत घबराओ भाई

अंदाजा लग रहा है मुझे भी
तू कैसे कैसे जोड़ जोड़कर खरीदे हो जो कंबल रजाई
अब तो कुछ बचा न होगा
तुम्हारे पास जमा पूँजी एक भी पाई
ऐसे में आफत बनके कोरोना का तीसरी लहर है आई
करलो थोड़ा दान धरम कल
संचित कर लो पुण्य कमाई

खूँटातोड़, सूरज करेगा कल मकर राशि में प्रवेश
तब गिरी अर्थव्यवस्था पटरी पर आई
कवि: खूँटातोड़
“मेरी ओर से आप सभी अपनों को पावन पर्व मकर संक्रांति और लोहड़ी की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाईयां।''
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