Aaina Shayari आईना शायरी इमेज - आईना कविता, आईने पर शायरी
आईना से अदावत नहीं यार की,
ये कहानी पुरानी बहुत प्यार की!
मैं शिकायत करूँ तो करूँ मैं कहाँ,
बेरुख़ी देख ली आज सरकार की!
रश्क होता मुझे आईना से यहाँ,
देखता चेहरा रोज दिलदार की!
हाल कहती सदा ये बदलती नहीं,
रूप चाहे सजा लोग हर बार की!
दाग फिर भी यहीं तो दिखाएं सदा,
राज दिल में छुपा साज झंकार की!
बात तो भी विजय आज मुमकिन नहीं,
बात हो आईना आज रुखसार की!
विजय सिंह "रवानी"
चिरिमिरी (छत्तीसगढ़)
प्रकाशन तिथि -२८.०६.२०२१
दैनिक माधव एक्सप्रेस
आईना शायरी | शीशा शायरी | आईना कविता
Aaina Shayari Collection Hindi
शीशा नुमा है संग
मैं आइना हूँ मुझको बिखरने का डर नहीं
दुनिया ये जानती है बस उसको ख़बर नहीं।
पत्थर किधर से आया था मालूम है मुझे
मुझको किसी से आज भी शिकवा मगर नहीं।
साए से जिसके बैठ के रो लूं मैं दो घड़ी
इस रह गुज़र में एक भी ऐसा शजर नहीं।
नाज़ां हैं चांद-तारों की क़ुर्बत पे ये बहुत
तारीकियों को रात की सूरज का डर नहीं।
छू लेगा आसमां ज़रा मौक़ा तो दो इसे
पंछी असीरे क़ैद है बे बालो-पर नहीं।
आईना कविता
ऐ वक़्त बार बार न मिसमार कर इसे
शीशा नुमा है संग का कोई जिगर नहीं।
जिसको भी देखिए है ज़माने कि फ़िक्र में
ख़ुद अपने ख़ालो-ख़त पे किसी की नज़र नहीं।
मजनूं हो क्या जो चाक गिरेबान कर लिया
तंक़ीद का ज़रा सा भी तुम परअसर नहीं।
जुगनू सिफ़ात में हूं ख़ुश अतिया मैं इसलिए
तक़दीर में सभी की तो शमसो कमर नहीं।
अतिया नूर
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