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जदीद-व-मुन्फ़रिद नातिया,हम्दिया-व-ग़ज़लिया-कलाम-ए-शाइर-ए-ह़क़/शायिर-ए-इस्लाम

 जदीद-व-मुन्फ़रिद नातिया,हम्दिया-व-ग़ज़लिया-कलाम-ए-शाइर-ए-ह़क़/शायिर-ए-इस्लाम

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दुन्या/दुनिया तड़प रही थी " मुहम्मद " की " आस " में!
तब आए, और अमर हुए वह/ वो " इतिहास " में!!
" उम्मत " की, मुस्लिमों की शफ़ाअत करेंगे वह/ वो!
" हम लोग " हैं, " नबी " की " शफ़ाअत " की " आस " में!!
" कल्कत्ता " की ये " बाबरी-मस्जिद " नयी है,यार!
क्या ?,दर्ज होगी " मस्जिद-ए-नव ", " इतिहास " में!!
" आईन " को बदलने लगे हैं " ये अन्ध-भक्त "!?
" मेरे वत़न " के लोग हैं " ख़ौफ़ो-हिरास " में!!
चारों त़रफ़ हैं " दुश्मन-ए-जानी ", " सलाम जी "/ " दिलीप जी "!!?
" कोई "," सुकून " से नहीं, " ख़ौफ़ो-हिरास " में!!??
कुछ दुश्मनों को देखते हैं " सुब्हो-शाम ", " ये "!!
" मेरी गली के लोग " हैं " ख़ौफ़ो-हिरास " में!!!
" क़ानून " को बदल रहे हैं " सारे अन्ध-भक्त "!!??
" मेरे नगर के लोग " हैं " ख़ौफ़ो-हिरास " में!!!
" बिस्मिल प्रेम-नाथ " का " अफ़्साना-ए- वफ़ा " 
पढ लो," मुरादपूर " के " इस इतिहास " में!!
" बिस्मिल प्रेम-नाथ ", " जिगर "," मास्टर सलाम "!!!
होंगे ज़रूर दर्ज " सभी/नये इतिहास " में!!
" क़िब्ला/हज़रत कबीर ऑफ़ मगनपूर, क़ादिरी "!!
हैं दर्ज उन के नाम अभी/ सभी " इतिहास " में!!
" ऐ यार "!, " देव-दास " ही की याद आएगी!!
पाओगे " मेह्रो-इश्क़ो-वफ़ा ", " राम-दास " में!!
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" दिलकश-ह़सीना " लेट गई " सब्ज़ घास " पर!!
" दिल ", " बे-क़रार " सा/भी है," मिलन " ही की " आस में " में!!
देखो,"सजन "!, है " मस्त-बदन ","सब्ज़ घास " पर!!
" कोई "/" जिगर " तड़प रहा है," मिलन " ही की " आस " में!!
" ख़ौफ़ो-ख़त़र " की बात नहीं है, " सलाम जी/दिलीप जी "!!
अब " साँप-बिच्छु " भी नहीं " गुलशन की घास " में!!
" उन " के " ससुर " की बात निराली थी/है, " राम जी "!!
थीं/हैं " ख़ूबियाँ ", " सलाम-बिरादर ' की " सास " में!!
" यारो "!, " तग़य्युर " और " तबद्दुल/तबद्दल " जो आ गया!
" इन्साँ प्रेमनगरी " में, हाँ!, " राम-दास " में!!
" ग़म " में है कितना लुत़्फ़, " वफ़ा " में है क्या?मज़ा/मह़ब्बत/इबादत में है मज़ा!!
क्या? लज़्ज़ते हैं, " इश्क़ो-मह़ब्बत " की " प्यास " में!!
अपने प्रेमी को, तु ग़लत़् मत समझना!, हाँ!
" ऐ पारो "!, " खूबियाँ " हैं,तिरे/तेरे " देव-दास/राम-दास " में!!
"उस्ताद-ए-मद्रसा हैं," मुस्लिम " हैं," पीर " हैं!
हाँ!, ढेर सारी ख़ूबियाँ हैं " राम-दास " में!!
" ये दास/बन्दा " भी हुआ/हुवा है " मुशर्रफ़-ब-दीन-ह़क़् "!!
हैं ढेर सारी ख़ूबियाँ,इस " राम-दास " में!!
" इन्सान " हैं, " कवि " हैं, " पुराने अदीब " हैं!
हाँ!, कुछ तो ख़ूबियाँ हैं " श्रीराम-दास " में!!
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नोट :-
यह जदीद-व-मुन्फ़रिद ग़ज़ल,श्री प्रेम-नाथ बिस्मिल मुरादपूरी,जनाब-ए-सलामुल्ह़क़ सलाम मगनपूरी, वग़ैरा की नज़्र है!
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PROF.DR.RAAM-DAAS NAANAK PREMI RAAJ-KUMAAR JAANEE DILEEP KAPOOR " INSAAN PREMNAGARI "/ JIGAR RAANCHIWEE/ JAAWED ASHRAF QAIS FAIZ GHAALIBEE AKBARABADI

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