Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

आत्म अनुशासन और सहानुभूति का महीना : माह ए सियाम

आत्म अनुशासन और सहानुभूति का महीना : माह ए सियाम

 ✍️ : असलम आज़ाद शम्सी 

इस्लाम धर्म में रमज़ान का महीना कई मायनों में अति महत्वपूर्ण है। रमज़ान हिजरी संवत का नौवां और सभी महीनों से अफ़ज़ल एवं महत्वपूर्ण है। इस्लामी तारीख में इस महीने के हवाले से बहुत सारी फजीलतें और रिवायतें आई हैं। रमज़ान और इस माह के रोज़े इस्लाम धर्म के पांच प्रमुख स्तम्भों मे से एक है। यह महीना इस्लामी तारीख से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है और इस्लाम धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण किताब कुरआन मजीद इसी मुबारक महीने में अवतरित हुई थी।इस महीने में हर मुस्लमान मर्द औरत जो बालिग़ हो और स्वस्थ्य हो उस पर रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं।

Aslam Azad


 रमज़ान के पूरे महीने में मुसलामान सुबह से शाम तक उपवास रखते हैं जिसमें भोजन, पेय, धूम्रपान एवं अन्य सांसारिक इच्छाओं एवं जरूरतों से परहेज़ करते हैं। इस्लाम धर्म में इस महीने की बड़ी अहमियत है और इस माह को रहमत, बरकत, तिलावत, इबादत, ग़मख़ारी, और भलाई का महीना बताया गया है। ये महीना लोगों पर रहम करने, उनकी मदद करने, गुनाहों से बचने और सब्र करने का हुक्म देता है। 

यूं तो इस्लाम धर्म का हर माह अपने आप में बहुत सारी विशेषताओं, उद्देश्यों और अलग अलग तारीखी रिवायतों के दृष्टिकोण से बहुत महत्तवपूर्ण है पर इन सब में रमज़ान को विशेष दर्जा प्राप्त है।इस्लाम की सबसे महत्त्वपूर्ण किताब कुरआन में रोज़े को फ़र्ज़ करार दिया गया है। इस महीने में एक नेकी का सवाब आम दिनों की तुलना में सत्तर गुना अधिक है। इस माह में दिन के रोज़े के साथ रात का क्याम अर्थात तरावीह का भी मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा खुब एहतमाम किया जाता है। रोज़ा केवल दिन भर भूखे प्यासे रहने का नाम कदापि नहीं है रोजा सिर्फ खाने पीने से दूर रहने का नाम नहीं है बल्कि यह आध्यात्मिक रूप से अपने मन मस्तिष्क का कायाकल्प और आत्म चिंतन करना है। यह महीना ईश्वर से करीब आने, उनकी भक्ति करने और आत्म अनुशासन प्राप्त करने का है। ये तो वो महीना है जिसमें रोजेदारों को अपने मनःस्थिति एवं पर भी उतना ही संयम रखना होता है - रोज़े का दौरान हमें बहुत सारी बातों का विशेष ध्यान रखना होता है जिसमें बुरी बातों के बोलने, सुनने, किसी को नुक़सान पहुंचाने, किसी का माल हड़पने, किसी को अनुचित शब्द से पुकारने जैसी कई बातें हैं अर्थात रोजेदारों को चाहिए कि वह अपने नाक, कान और जुबान का भी रोजा रखे। हालांकि इस्लाम धर्म में इन सब बातों और इन सब कार्यों को आम दिनों भी इतनी ही कड़ाई से पालन करने का हुक्म है।

रमज़ान का मकसद इंसानों को बुराई के रास्ते से हटाकर अच्छाई और भलाई के रास्ते पर लाना है। इस माह का मकसद एक व्यक्ति को दूसरे से क़रीब लाना, भेदभाव को दूर करना, आपसी कलह और द्वेष को खत्म करना तथा मुहब्बत, उखुव्वत, इज्ज़त, सम्मान, अख़लाक़ और अकदार को बढ़ावा देना है। यह महीना राह से भटके हुए को राह ए रास्त पर लाने का, मुसलामानों की गुनाहों की माफी का, जहन्नम से निजात का, नेकी का भाव बढ़ाने का, रोज़ी में बरकत, घर में रहमत, गरीबों की मदद व नुसरत और मजलूमों पर रहम करने का है।
ये वो महीना जिसका इन्तज़ार पूरी दुनिया के मुसलामान साल भर करते हैं, जिसको पूरे एहतराम, मसर्रत, संजीदगी और पाकीज़गी के साथ गुज़ारा जाता है, जिसमें कुरान करीम की तिलावत हर शख्स करता है, जिसमें मुस्लमान गुनाहों से बचते हैं और सदका, फ़ितरा और ख़ैरात का खुब एहतमाम करते हैं। कुल मिलाकर यह महीना इस्लाम धर्मावलंबियों के लिए बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण है जो मुसलामानों को अपनी आत्मा को शुद्ध करने, अपने विश्वास को मजबूत करने, इबादत पर ध्यान केंद्रित करने और अल्लाह (ईश्वर) की भक्ति में लीन होने का अवसर प्रदान करता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ