पांड्य काल के दौरान राज्य के प्रशासन की चर्चा
1. पांड्य साम्राज्य की पृष्ठभूमि और प्रशासनिक ढांचा
(क) पांड्य वंश का उदय और विस्तार
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पांड्य राजवंश का उल्लेख संगम साहित्य में मिलता है। 
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इस वंश के प्रमुख शासकों में मारन, नेडुंजेलियन, जटिला परमेश्वरन और सुंदरा पांड्य शामिल थे। 
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13वीं शताब्दी में जाटवरमन सुंदरा पांड्य (1251-1268 ई.) ने पांड्य साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचाया। 
(ख) केंद्रीकृत शासन व्यवस्था
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पांड्य शासन राजतंत्र पर आधारित था, जहाँ राजा सर्वोच्च शासक था। 
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प्रशासनिक कार्यों के लिए राजा की सहायता मंत्री परिषद (मंत्रिमंडल) करती थी। 
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शासन को कुशलता से चलाने के लिए साम्राज्य को कई भागों में विभाजित किया गया था। 
2. प्रशासनिक विभाजन और प्रशासनिक इकाइयाँ
(क) राज्य प्रशासन की मुख्य इकाइयाँ
पांड्य साम्राज्य को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने के लिए इसे विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया था:
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मंडलम (प्रांत) – साम्राज्य को कई मंडलम (प्रांतों) में विभाजित किया गया था, जिनका प्रशासनिक प्रमुख राजकुमार या सामंत शासक होता था। 
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वलनाडु (जिले) – मंडलम को छोटे भागों में बाँटा गया था, जिन्हें वलनाडु कहा जाता था। 
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नाडु (तहसील) – वलनाडु के भीतर नाडु नामक उपखंड होते थे, जिनका प्रशासन स्थानीय प्रमुखों के हाथों में होता था। 
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उर (ग्राम स्तर पर प्रशासन) – गाँवों की प्रशासनिक इकाई उर कहलाती थी, जहाँ ग्राम सभा द्वारा स्थानीय मुद्दों को सुलझाया जाता था। 
(ख) स्थानीय स्वशासन की भूमिका
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गाँवों में प्रशासनिक कार्य ग्राम सभाओं (सभा और उर) के माध्यम से किए जाते थे। 
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यह स्वशासन प्रणाली चोल शासन की तरह ही प्रभावी थी और ग्रामीण प्रशासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करती थी। 
3. सैन्य संगठन
(क) पांड्य सेना की विशेषताएँ
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पांड्य सेना चार मुख्य भागों में बंटी थी – पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी सेना और नौसेना। 
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सेना को प्रशिक्षित रखने के लिए नियमित युद्ध अभ्यास कराए जाते थे। 
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शासक युद्ध अभियानों में व्यक्तिगत रूप से नेतृत्व करते थे। 
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नौसेना का भी अच्छा विकास हुआ था, जिससे समुद्री व्यापार और तटीय रक्षा मजबूत हुई। 
4. कर और राजस्व प्रणाली
(क) कराधान की प्रमुख विशेषताएँ
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कृषि ही राज्य की आय का प्रमुख स्रोत थी। 
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भूमिकर (भूमि कर), व्यापार कर, पेशा कर और सिंचाई कर जैसे कर लगाए जाते थे। 
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मंदिरों और सामाजिक कार्यों के लिए कर संग्रह किया जाता था। 
(ख) राजस्व का उपयोग
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करों से प्राप्त राजस्व का उपयोग सड़क निर्माण, जलाशयों के रखरखाव, मंदिरों के निर्माण, सेना के वेतन और प्रशासनिक कार्यों में किया जाता था। 
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बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाएँ भी संचालित की गईं। 
5. न्याय प्रणाली
(क) राजा – सर्वोच्च न्यायाधीश
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पांड्य शासन में न्याय का अंतिम निर्णय राजा के पास होता था। 
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राजा अपराधियों को दंड देने के लिए स्वतंत्र था, लेकिन कभी-कभी वह मंत्रिपरिषद की सलाह लेता था। 
(ख) दंड और कानून व्यवस्था
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अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान था। 
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मंदिरों और गाँवों में न्यायालय स्थापित किए गए थे, जहाँ स्थानीय विवाद सुलझाए जाते थे। 
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समाज में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए पुलिस बल भी कार्यरत थे। 
6. आर्थिक और व्यापारिक नीति
(क) कृषि और सिंचाई
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कृषि पांड्य राज्य की अर्थव्यवस्था का मूल आधार थी। 
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पांड्य शासकों ने कावेरी, वैगई और ताम्रपर्णी नदियों के किनारे बड़े जलाशय और नहरें बनवाईं। 
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धान, नारियल, सुपारी और मसालों की खेती व्यापक रूप से होती थी। 
(ख) व्यापार और वाणिज्य
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पांड्य शासन के दौरान आंतरिक और विदेशी व्यापार अत्यधिक विकसित था। 
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दक्षिण-पूर्व एशिया, अरब देशों, चीन और रोम तक व्यापार संबंध थे। 
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प्रमुख बंदरगाहों में कोरकाई, सोपट्टन, कावेरीपट्टिनम और तुतीकोरिन शामिल थे। 
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सोना, चाँदी, मोती, मसाले, हाथीदांत, रेशम और सूती वस्त्रों का निर्यात किया जाता था। 
7. धर्म, समाज और संस्कृति पर प्रशासन का प्रभाव
(क) धर्म और मंदिर प्रशासन
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पांड्य शासक मुख्य रूप से हिंदू धर्म के अनुयायी थे, लेकिन जैन और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया। 
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उन्होंने मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), सुंदरेश्वर मंदिर और अन्य भव्य मंदिरों का निर्माण कराया। 
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मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र थे, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। 
(ख) साहित्य और शिक्षा
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पांड्य शासन के दौरान तमिल साहित्य को संरक्षण मिला। 
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नक्कीरर, तिरुतक्कदेवर और कंबन जैसे महान कवि इसी काल में हुए। 
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संगम साहित्य का विकास हुआ और तमिल भाषा में धार्मिक एवं काव्य ग्रंथों की रचना हुई। 
8. पांड्य शासन का पतन
(क) आंतरिक संघर्ष और विद्रोह
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उत्तराधिकारी विवाद और आपसी संघर्षों के कारण पांड्य राज्य कमजोर होने लगा। 
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मंदिरों और भूमि संपत्ति के अधिकार को लेकर विद्रोह बढ़ने लगे। 
(ख) बाहरी आक्रमण
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14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के मलिक काफूर ने पांड्य साम्राज्य पर हमला किया। 
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इसके बाद धीरे-धीरे पांड्य राज्य कमजोर पड़ गया और विजयनगर साम्राज्य के अधीन आ गया। 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
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