जीवन तेरा मन दर्पण : कविता
विषय : दर्पण
शीर्षक : जीवन तेरा मन दर्पण
दिनांक : 20 नवंबर, 2024
दिवा : बुधवार
जीवन तेरा मन दर्पण
जीवन तेरा मन यह दर्पण,
सदा किए रहता है अर्पण।
सदा पथ यह तुझे दिखाए,
स्वयं को तू कर दे समर्पण।।
सबको सच्चा रूप दिखाता,
सुंदर कुरूप सबको बताता।
दर्पण का है बस काम यही,
दर्पण सबके मन को भाता।।
सुंदर को सुंदर ही दिखाए,
बदरूप को बदरूप बताए।
झूठी चुगली कभी न करता,
सच को सदा सच कहलाए।।
प्यारे दर्पण बहुत महान हो,
देते सबको तुम तो ज्ञान हो।
रूप दिखाकर सच बताते,
सच सच्चे तुम अरमान हो।।
सौंदर्यता का आधार दर्पण,
मानते नहीं तुम हार दर्पण।
सच कहने में संकोच नहीं है,
तेरा बहुत है आभार दर्पण।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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