गुज़रे ज़माने का वो दिन, तू अब तो लौट आना - गुज़रे ज़माने पर कविता
गुजरे जमाने का वो दिन, तू अब तो लौट आना
पहले भाई से भाई का
कितना प्यार भरा नाता था
कहानी किस्से सुनकर मुझे
पुराने जमाने की याद आ ही गई।
ऐ वक्त मैं तुझे क्या कहूँ
तूने हमारे साथ ये क्या किया
आज भाई ही भाई का दुश्मन बन बैठा है
गुजरे जमाने का वो दिन, तू अब तो लौट आना।
लोग कहते है कि दुनिया बदल गई है
लेकिन यह सच है कि हम बदल गए है
धन_दौलत के लिए लड़ते_ लड़ते
भाई_बहन के रिश्ता का स्वरूप बदल गए है।
आज अपनों से ही जो दर्द मिल रही है
उसे सांझा करना भी मुश्किल है
पहले था वास्तविक मुस्कुराना
गुजरे जमाने का वो दिन, तू अब तो लौट आना।
क्यों खो गए वो दिन, कहां गए वो दिन
जहॉ उजली मुस्कान और खिला चेहरा था
आज अस्त व्यस्त है कर्म हमारे
जिंदगी हुई सुनी और सफर भी तन्हा है।
पहले जमाने में, मॉ देती थी नवजीवन
पिता जी करते थे हमारी सुरक्षा और
गुरुजी भरते थे सच्ची मानवता हमारे जीवन में
गुजरे जमाने का वो दिन, तू अब तो लौट आना।
नूतन लाल साहू
0 टिप्पणियाँ