गुनाह छिपा रखा बेवजह की बंदिश नही करते : गजल
ग़ज़ल
काफिया:इश
रदीफ:नहीं करते
1222----1222----1222---1222
किसी से मतलब निकाल यह ही पाॅलिश नही करते,
गुनाह छिपा रखा बेवजह की बंदिश नही करते।
कभी ग़म की घटा छाये न समझे ये ठहर जाये,
सुखी बदली वहाँ भी साथ है रंजिश नहीं करते।
चमक बनती रहे गगन बिच तारे जगमग करेंगे,
खुद किसी से करें नफरत यही ख्वाहिश नहीं करते।
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कहीं बस्ती बसी थी प्यार की साथी हमारी भी,
निभा किरदार जैसे भी मुझे खारिश नहीं करते।
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कभी दिल पर लगे जो चोट हॅंस करके उसे सहना,
बना दस्तूर तुम लेना कभी जुम्बिश नहीं करते।
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जहाॅं पे दर्द में जीकर किया करता गुजर कोई,
मसीहा देखने की भी बड़ी कोशिश नहीं करते।
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कहें हम कुछ कहो तुम कुछ सुमन गुम सुमजरा हॅंस दे,
शिकायत क्या उसे भूलो कभी साजिश नहीं करते।
स्वरचित
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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