महर्षि वाल्मीकि जयंती पर कविता
महर्षि वाल्मीकि जयंती
आतंकि दस्यु रत्नाकर, चितवन में थे कुख्यात।
ब्रह्मा के पौत्र मानस पुत्र प्रचेता पुत्र विख्यात।।
कुछ कहते महर्षि कश्यप व चर्षणी आर्यपुत्र वे थे।
भील समाज में रह, वे आरोपित संस्कार पाए थे।।
भीलों संग वन से गुजरते, राहगीरों को लूटा करते।
रत्नाकर ऐसे परिवार के साथ, दस्यु बन कर रहते।।
नारद मुनि चितवन में, फंसे डाकू रत्नाकर के चंगुल में।
नारद प्रश्न किए, तुझे मिलेगा क्या(?), ऐसे कुकर्मों में।।
उत्तर सीधा, यह परिवार हेतु हम सब मिलकर करते।
प्रश्न, वे तुम्हारे कुकृत्यों के साझेदार भी बन हैं पाते।।
रत्नाकर स्वजनों के पास जा, मुनि का प्रश्न दोहराए।
उन्होंने अस्वीकारा तो, विवेक जगा व बहुत पछताए।।
हृदय परिवर्तित देख, नारद राम नाम जप का रहस्य बताए।
सुपथ पर चल दुष्कर्म से दूर रहना, धर्म का पथ समझाए।।
उनके मुंह से, राम की जगह मरा मरा शब्द उचरे।
नारद कहे, यही दोहराओ, छुपा राम संग जप रे।।
अलख जगाई, तप देख ब्रह्मा जी- सदेह दर्शन को आए।
तन पर लगे बांबी को देख ब्रह्मा वाल्मीकि नाम बताए।।
परित्यक्ता सीता माता की शरणस्थली, आश्रम प्रसिद्धि पाई।
लव-कुश जन्मस्थली, राम स्पर्श से कुपित मां धरा में समाई।।
श्रीराम चरित्र से प्रेरित होकर लिखा, महाकाव्य ऋषि ने।
संस्कृत में था महाकाव्य, अनुवाद किया संत तुलसी ने।।
आश्विन शुक्ल पक्ष, शरद पूर्णिमा वाल्मीकि जयंती मनाते।
प्रथम राम कथा के चौबीस हजार श्लोक ज्ञानी भक्त गाते।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
महर्षि वाल्मीकि और रामायण
पुनश्च - महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में जिस संस्कृत की लिपि का व्यवहार किए वह ६००वीं शताब्दी के बाद हीं ऐतिहासिक तथ्यों और शोध के आधार पर प्रचलित थी। कूट का शाब्दिक अर्थ है पहाड़। वहाँ वाल्मीकि ने ध्यान में श्रीराम को देखा और सुबहू अपने महाकाव्य में चित्रित किया। कतिपय श्लोकों में बौद्ध के सिद्धांतों की भर्तशना भी की, अर्थात बौद्धकाल (२४२४ वर्ष पूर्व) के बाद वाल्मीकि रामायण लिखी गई। लव-कुश का जन्म उनके आश्रम में हुआ अतयेव राम काल का निर्णय सहज नहीं। राम ने लंका पर आक्रमण पूर्व शिव की आराधना की और महाभारत में कृष्ण और शिव मध्य युद्ध (बाणासुर रक्षक) भी वर्णित है तथा भीम द्वारा वन में वयोवृद्ध हनुमान जी के समक्ष नत होने की भी चर्चा है जब भीम अपनी राह से हनुमान जी की पोंछ नहीं हटा पाए! इस सबका समकालिक आना तर्कपूर्ण नहीं प्रतीत होता! शिवकाल आठ-नौ हजार वर्ष पहले और कृष्ण लगभग सवा पांच हजार वर्ष पूर्व था।
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