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नवीन-व-विचित्र दोहे Naveen O Vichitra Dohe

नवीन-व-विचित्र दोहे/ अश्आर


प्यारे प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल की नज़्र
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" मुह़म्मद "( सल्अम:) का " रुख़-ए- अन्वर " है बेहतर और रौशन!
" मुह़ब्बत का वही पैकर है बेहतर और रौशन!!
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" प्यारे कवि अविनाश भाई!/ प्रेम-नाथ भाई!, सोचो, ज़रा "!!
फूलों को रंगने की ह़माक़त करता है कौन!!?
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अजब साँसों के " ज़ेरो- बम " देखते हैं!
तुम्हें, किस तमन्ना से, हम देखते हैं!?!
परी देखते हैं, सनम देखते हैं!
" ख़्याबाँ- ख़्याबाँ इरम देखते हैं!!
नहीँ बात बद- सूरती की, कहीं भी!!
हम अब ख़ूब- सूरत सनम देखते हैं!!
जिगर वाले, " दर्दो- अलम " देखते हैं!
जहाँ में फ़क़त़ " ग़म ही ग़म " देखते हैं 
अज़ीज़ो!,अजब बात है, " हुस्न वाले"
" प्रेमी " के " क़ौलो- क़सम" देखते हैं!
" नशेबो- फ़राज़े- बदन " ख़ूब है, यार!
अजब साँसों के " ज़ेरो- बम" देखते हैं
नये नाक़िदीने- सुख़न, अब तो, यारो!
" कलामे- फ़िराक़ो- अदम " देखते हैं!
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" नशेबो- फ़राज़े- बदन " देखते हैं!
हम अब ख़ूब- सूरत चमन देखते हैं
कयी लोग" दुर्रे- अदन " देखते हैं!?
कयी फ़र्द " लाल- ए- यमन " देखते हैं
अजब होते हैं आशिकों के मुक़द्दर ?!
प्रेमी भी " संगो- समन " देखते हैं!!
लिबासों में बेहद जचा करते हैं वे/ वो
हसीनों के, हम, पैरहन देखते हैं!!
अज़ीज़ो!, मिलनसार ह़ज़रात हैं जो!
वो, " तहज़ीब- ए- गंगो- जमन " देखते हैं!!
चले जाते हैं सैर- ए- गुल्शन को हम भी!
के/ कि गुल्फ़ाम और गुल्बदन देखते हैं!!
" रतन- नाध सरशार " याद आते हैं ख़ूब!
इसी वास्ते हम " रतन " देखते हैं!!
लिबासों में बेहद जचा करती हैं, हम!
हसीनाओं के पैरहन देखते हैं!!
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जन्म तुम को दिया है जिस ने,उसी बाप से बात करो!
पाप करने से क़बल, अपने उसी बाप से बात करो!!
बाप ज़िन्दा है अभी, बाप हर इक बाप का बाप है आज!
बेटे को हाथ लगाने से क़बल, बाप से बात करो!!
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रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कुमार कपूर " इन्सान प्रेमनगरी "/
आचार्य/ अल्लामा जावीद/ जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ ग़ालिबी वारिसी अकबराबादी

नवीन-व-विचित्र दोहे Naveen O Vichitra Dohe

प्यारे प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल की नज़्र
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उस पर बरसाए गये पत्थर ताबड़- तोड़!?
अबला - नारी को, " प्रेमी "!, यूँ ही मत छोड़ !!

मासूम और मज़लूम नारी!, आ !, मेरे पास !!
हाँ!, तेरे दुख- दर्द का,मुझ को है एहसास !!

" रामा जी"!/" अशरफ़ जी"!/" बिस्मिल जी"!,हर एक " इब्न-ए- आदम " है " मौन " !?
मारे पत्थर कितने हैं !?, बतलाएगा कौन ! ?

किस ने कितने " संग " बरसाए??!," ऐ जावीद " !/ 
सब ने सारे " संग " बरसाए !!?," ऐ जावीद " !
इक दिन सुधरेगा " बशर "/ " मनुष्य "!, मुझ को है " उम्मीद " !!

है इक अल्बेला कवि , सब को है मालूम !!
बस्ती- बस्ती " राम "/ " दास " के " दोहों " की है " धूम " !!
" शायर "/ " शाइर "/ " लेखक " वह/ वो " अल्बेला " है, " सब " को है मालूम !!

बस्ती- बस्ती "/ गुल्शन- गुल्शन/ सह़रा- सह़रा " क़ैस "/ " फ़ैज़ "/ " राम "/ " दास " के " शेरों "/ ग़ज़्लों/ नज़्मों/ लेखों/ दोहों " की है " धूम " !!

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महान कवि " रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कुमार कपूर इन्सान प्रेमनगरी/ आचार्य/ अल्लामा अब्दुल्लाह जावीद/ जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ ग़ालिबी वारिसी अकबराबादी जी " के " दीगर अश्आर और दोहे, वगैरह फिर कभी पेश किए जाएँगे,इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर !!

नवीन-व-विचित्र/ जदीद-व- मुन्फ़रिद अश्आर

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प्यारे प्रेम- नाथ कुमार बिस्मिल की नज़्र
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तू " नीली- नीली/ काली- काली आँख की इक झील बन के/ हो के देख !
" त़ुर्फ़ा/ उम्दा जदीदियत " की भी " तफ़्सील " बन के/ हो के देख !!
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" हुस्नो- जमाल वाले " खरे उतरे ही नहीँ !!?
वो/ वे/ वह " लाजवाब " हो गये, " मेरे सवाल " पर !!?
" इश्क़ो- वफ़ा " की बात पे, " सब " हैं " चराग़- पा " !!?
या, " रश्क " कर रहे हैं ?! " हमारे कमाल " पर !!
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" बन्दे "!," अबस " ही, " सब्रो- तह़म्मुल " से " काम ले " !
" जम के शराब पी "!, " दोनों हाथों में " जाम ले " !!
सब वाइज़ों की " पिन्दो- नसीह़त " को " भूल जा " !!
" हर पल शराब पी "!, " दोनों हाथों " में " जाम ले " !!
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तू अपना हम- ज़ुबान, यहाँ, हम- नवा, तलाश !
" हमबिस्तरी " के वास्ते भी " दिलरुबा " तलाश !!
" जन्नत- सा " सुख मिलेगा , " मज़ा " आएगा " बहुत " !!
" ख़ुश- रंग "/ " ख़ुश- ज़ौक़ ", " ख़ुश- मिज़ाज ", कोई " दिलरुबा " तलाश !!
" तुझ को पहूँचा दे, जो, " गुलिस्तान-ए- ख़ुल्द " में !!
" वैसा ख़ुलूसकार "/ " वैसा प्यामबर- सा ", " कोई रह्नुमा " तलाश !!
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" इक ख़ुश-अदा- ह़सीना ", परी- चेहरा खोज ले/ ढूँढ ले !
अब कर ले " ख़ुश- ख़िसाल, कोई दिलरुबा " तलाश !!
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" रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर इन्सान प्रेमनगरी "/आचार्य/ अल्लामा अब्दुल्लाह जावीद/ जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ ग़ालिबी वारिसी अकबराबादी "



" नवीन-व-विचित्र/ जदीद-व- मुन्फ़रिद, ताज़ा ग़ज़ल "

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प्यारे प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल की नज़्र
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" मधू- बाला " को अक्सर सोचता हूँ !
हमेशा,सब से, हट कर सोचता हूँ !!

मैं तो " बिस्मिल कवि "पर सोचता हूँ !
हमेशा , सब से , हट कर सोचता हूँ!

मैं " तय्यब वास्ती " पर सोचता हूँ !/
मैं " अशरफ़ वारिसी " पर सोचता हूँ!

हमेशा , सब से , हट कर सोचता हूँ!!
" ख़ुदा-ए-लम्- यज़ल "क्या है!," प्रेमी
मैं, ये अक्सर , बराबर, सोचता हूँ ! !

" वो मोहनदास गाँधी " क्या थे!?,रामा
मैं, ये , अक्सर , बराबर, सोचता हूँ !!

" बहादुर लाल जी " क्या थे!?, "अज़ीज़ो "!/ रफ़ीक़ो !
मैं, ये , अक्सर , बराबर , सोचता हूँ !!

अभी के एक- इक नेता को , यारो !
मैं, " बंदर के बराबर " सोचता हूँ !!

हूँ" क़त़रा ",पर, " समुन्दर " सोचता हूँ!
हमेशा , ख़ुद से बढ कर सोचता हूँ !!

चराग़ों से निकलते हैं " उजाले " !!
अँधेरे फैले क्यों कर , सोचता हूँ !!

मिरे/ मेरे अत़राफ़ में हैवान हैं सब !?
हूँ क्यों?" इन्सान "!, " अक्सर सोचता हूँ!!

मुह़ब्बत, दर्दो- ग़म, राह़त , मुसर्रत !!!
नहीँ क्या!?, " दिल " के अन्दर,सोचता हूँ !!

" ख़ुदाई ", " बन्दगी ", " दर्द-ए-जुदाई"
नहीँ क्या !?, मेरे अन्दर, सोचता हूँ !!

बयाबाँ, दश्त , सन्नाटे , बगोले........!!
नहीँ क्या !? मेरे अन्दर, सोचता हँ....!

" जनाब- ए- फ़ैज़ अशरफ़ क़ैस को मैं
क़लन्दर के बराबर , सोचता हूँ.......!

मैं, अपने आप को , मेरे अज़ीज़ो !
" मुक़द्दर का सिकन्दर " सोचता हूँ !!

अँधेरा छा गया है, यारो! , लेकिन !
बदल जाएगा मंज़र, सोचता हूँ !!

ज़माने के ख़ुदाओ !,मैं तो ख़ुद को ,
" मुक़द्दर का सिकन्दर " सोचता हूँ!!

हर इक जानिब अँधेरा है,मगर,यार !
बदल जाएगा मंज़र, सोचता हूँ !!

अँधेरा ही अँधेरा है, मगर, " दास " !
बदल जाएगा मंज़र, सोचता हूँ !!

हर इक जानिब है ज़ुल्मत और अँधेरा
मगर बदलेगा मंज़र, सोचता हूँ !!

हर इक जानिब है नफ़रत का अँधेरा!
मगर बदलेगा मंज़र,सोचता हूँ !!

" मुह़ब्बत का उजाला" फैलेगा, " राम"
बदल जाएगा मंज़र, सोचता हूँ.......!

मैं अपने आप को, ऐ क़ैस मजनूँ !!
" मुक़द्दर का सिकन्दर " सोचता हूँ!/

मानता हूँ/ जानता हूँ !!
मैं अपने आप को, " जावेद अशरफ़ " 
" मुक़द्दर का सिकन्दर " सोचता हूँ!!

मैं अपने आप को, " ऐ रामजी राव"!
" मुक़द्दर का सिकन्दर " सोचता हूँ !!
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RAMDAS PREMI RAAJ-KUMAAR JAANEE DILEEP KAPOOR INSAAN PREMNAGARI/ ABDULLAAH JAAWEED ASHRAF QAIS FAIZ AKBARABADI

नवीन-व-विचित्र दोहे

प्यारे प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल की नज़्र
काम आए है अपनी तद्बीर, अपनी तक़्दीर !
अपने " भारत " की वदलती जाए तस्वीर !!
उस का इक घंटा , अठारह घंटे कहलाए !?
सोने- चाँदी के प्लेटों में " खाना "
खाए !?
उपलब्धि ऐसी,कि, बदली " हिन्दी- तस्वीर " !?
" नेता जी " ने " बेच दी "," भारत की जागीर " !?
हर दफ़्आ " चूना लगाए ", " ताज़ा- सरकार " !?
" नेताओं " को ही " डिनर " खिलवाए " हर बार " !?
" अपनी दुन्या " में नहीँ है " कोई बल्बीर " !?
" बिस्मिल भाई "!/ " अशरफ़ भाई"!/ " मोहन रामा"!, " अक़्ल वाले भी हैं " दिलगीर " !!
" उपलब्धि " ऐसी , " वत़न " की बदली तस्वीर !!
" नेता जी " ने " बेच दी "," सारी ही जागीर " !?
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" रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीप कुमार कपूर इन्सान प्रेमनगरी "/ अल्लामा जावीद/ जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ ग़ालिबी वारिसी अकबराबादी " 

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