अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्लo) की मूलभूत शिक्षाएं
( सरफराज आलाम )
शुरू अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है।
आज से 1450 वर्ष पूर्व अरब की धरती पर एक महान व्यक्ति का जन्म हुआ जिसने अपने कृत्यों से सम्पूर्ण विश्व को स्तब्ध कर दिया और जिसको आगे चलकर ईश्वर ने अपना अंतिम ईशदूत बनाया। हज़रत मुहम्मद एक महान व्यक्ति ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के उद्धारक थे। इतिहास साक्षी है कि उनके अंदर वह तमाम गुण मौजूद थे जो एक विश्वनायक के अंदर होना चाहिए। आम तौर पर लोग उन्हें इस्लाम धर्म का प्रवर्तक मानते हैं परन्तु सत्य यह है कि वह ईश्वर के अंतिम दूत थे जिन्हें ईश्वर ने समस्त मनुष्य जाति के कल्याण के लिए धरती पर अवतरित किया था। विश्व के समस्त धर्मों की मान्यता है कि मानव जाति के कल्याण के लिए भविष्य में कोई ईश्वर का दूत नहीं आएगा, इसलिए अब हज़रत मुहम्मद की शिक्षा का पालन करना चाहिए।
इतिहासकारों और विद्धानो ने अब तक जन्मे अनेक महापुरुषों के जीवन का अध्ययन किया और पाया कि हज़रत मुहम्मद के अंदर वह तमाम गुण मौजूद थे जो उन्हें श्रेष्ठतम बनाते हैं। विश्व प्रसिद्ध महान विद्वान और विचारक Michael H. Hart ने अपनी मशहूर पुस्तक "The 100" A Ranking of the Most Influential Persons in History में विश्व के सौ व्यक्तियों के जीवन का गहन अध्ययन किया और पाया कि हज़रत मुहम्मद साहब के व्यक्तित्व में वह तमाम सदगुण थे जो उन्हें प्रथम स्थान दिलाने के लिए मजबूर करते हैं।लेखक ने बताया है कि मेरी नज़र में जहाँ सौ व्यक्ति महान थे वहीं हज़रत मुहम्मद साहब का व्यक्तित्व सबसे प्रभावशाली था। 100 व्यक्तियों की सूची में मुहम्मद साहब को प्रथम स्थान पर रखने का सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने विश्व इतिहास को सबसे अधिक प्रभावित किया है। लेखक बार बार इस बात पर जोर देता है कि मैंने इस पुस्तक में प्रस्तुत तमाम हस्तियों का वर्णन केवल उनकी उपलब्धियों के आधार पर नहीं किया है अपितु उनके विश्वव्यापी प्रभाव को मानक बनाया है।
हज़रत मुहम्मद साहब का ज़िक्र करते हुए आरंभ में ही लेखक कहता है समस्त विश्व इतिहास में वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो सांसारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में पूर्ण रूप से सफल हुए। वह एक अत्यंत सफल राजनीतिज्ञ भी सिद्ध हुए। आज 1400 वर्षों के बाद भी विश्व भर में मनुष्य पर उनके व्यक्तित्व एवं शिक्षा का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। इस पुस्तक के सभी व्यक्तियों का जन्म एक सभ्य समाज में हुआ और वे उच्च संस्कृति मे पले बढ़े जबकि मुहम्मद साहब का जन्म अरब के शहर मक्का में 570 ई0 में हुआ जो उस समय विश्व का सबसे पिछड़ा हुआ समाज था। मक्का शिक्षा एवं व्यापार के क्षेत्र में अति पिछड़ा हुआ शहर माना जाता था।
विश्वनेता सिद्ध होने के लिए मुख्यतः चार विशेषताएं आवश्यक हैं जो ऐतिहासिक रूप से मुहम्मद साहब में पाए जाते हैं। प्रथमतः वह जाति, वंश या वर्ग से परे समस्त मनुष्य को समान समझते थे और सभों के समान शुभ चिन्तक थे। दूसरे उन्होंने जो सिद्धांत पेश किए वह मानव जीवन की सारी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। तीसरे उनका पथ-प्रदर्शन किसी विशेष क्षेत्र या काल के लिए नहीं बल्कि हर काल और हर स्थिति के लिए समान रूप से अनुकरणीय है। चौथा उन्होंने केवल सिद्धांत प्रस्तुत नहीं किया बल्कि उनको जीवन में कार्यान्वित करके भी दिखा दिया।
मुहम्मद साहब ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी शिक्षाओं को फैलाया उनमें प्रमुख क्षेत्र और शिक्षाएं निम्नलिखित हैं।
शिक्षा
1. इस्लाम के पवित्र ग्रंथ क़ुरान का पहला श्लोक इक़रा अर्थात पढ़ने से आरंभ हुआ।
2.शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक पुरुष और महिला के लिए आवश्यक है।
3. मां की गोद से मौत के दिन तक शिक्षा प्राप्त करो।
4. जो ग़ुलाम बच्चों को शिक्षा देता था उसे आज़ाद कर दिया जाता था।
5. शिक्षा प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक भाषा सीखो।
6. शिक्षा जहां भी मिले वहां से प्राप्त करो।
7. शिक्षा देने वाले गुरु का पिता समान आदर करो।
8. जो शिक्षा प्राप्त करने में लगा रहता है उसके लिए फ़रिश्ते भी दुआ करते रहते हैं।
9. स्त्रियों को भी समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
10. शिक्षा प्राप्त करने के लिए ईश्वर से अधिक से अधिक प्रार्थना करो।
मानवीय सामाजिक मूल्य
1. तुम सब आदम की संतान हो और आपस में भाई-भाई हो।
2. तुम में श्रेष्ठ वह है जिसके विचार और कर्म श्रेष्ठ हो।
3. बिना ऊंच-नीच और भेदभाव के सामाजिक कार्यों में भाग लिया करो।
4. अब तुम में कोई किसी को गुलाम(दास) के रूप में खरीद-फरोख्त नहीं करेगा।
5. किसी गरीब की सेवा करने वाला मनुष्य अल्लाह की राह में जिहाद (अनथक कोशिश) करने जैसा है।
6. जिसका पड़ोसी उसकी शरारतों से सुरक्षित नहीं, वह जन्नत में नहीं जाएगा।
7. ताकतवर वह है जो गुस्से के समय अपने पर काबू रखें।
8. ज़कात(अनिवार्य दान) से गरीबों और कर्जदारों की सहायता करो।
9. सूद (व्याज) लेने से बचो ताकि तुम पर ईश्वर की कृपा हो।
10. अनाथ के धन का हरण या दुरुपयोग करना बहुत बड़ा पाप है।
स्त्रियों का सम्मान
1. स्त्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करो।
2. तुम में सबसे अच्छा वह है जो अपनी घर वालों के लिए अच्छा हो।
3. स्त्रियों को अपना माल और जायदाद रखने का अधिकार है।
4. जो तुम खाओ और पहनो वही अपनी स्त्रियों को भी वही खिलाओ और पहनाओ।
5. जिसने लड़कियों की अच्छी परवरिश की और उनका विवाह किया उसके लिए जन्नत है।
6. विधवा और तलाकशुदा महिलाओं का सम्मान करो। उचित आयू हो तो उनका पुनः विवाह कर दो ताकि वह भी गर्व के साथ जीवन गुज़ार सके।
7.मां के पैरों के नीचे (उनकी सेवा करने में ) जन्नत है। 8. संसार में नेक पत्नी से बढ़कर कोई दौलत नहीं है।
9. पत्नी तुम्हारे लिए लिबास और तुम उनके लिए लिबास की तरह हो।
10. हया(शर्म) स्त्रियों का सबसे उत्तम ज़ेवर है।
सामाजिक बुराइयाँ
1. शराब और जुआ सब शैतानी काम हैं, इनसे बचो।
2. किसी मनुष्य की हत्या मत करो तथा झूठी गवाही मत दो।
3. ग़ीबत ( पीठ पीछे दूसरों की बुराई ) करना अपने मृत भाई का मांस खाने के समान है।
4. ईर्ष्या से बचो क्योंकि यह नेकियो (पूण्य ) को उसी तरह खा जाती है जिस तरह आग लकड़ी को खा जाती है।
5. जिसने लोगों से नम्रतापूर्वक बात नहीं किया उसने घोर पाप किया।
6. बिना कारण किसी एक मनुष्य की हत्या करना तमाम मनुष्य जाति की हत्या करने के समान है, उसी तरह एक मनुष्य की जान बचाना समस्त मनुष्य जाति के जीवन बचाने के समान है। (क़ुरआन)
7. लालच से बचते रहो क्योंकि तुम से पहले के लोगों की बर्बादी लालच के कारण हुई है।
8. जो व्यक्ति अपनी ज़ुबान और शर्मगाह (जननांग) की सुरक्षा करता है वह जन्नत में जरूर जाएगा।
9. मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाएगा।
10. पाप की बात करने वाला पाप करने के समान है।
आजीविका के साधन
1. ईश्वर ने व्यापार को हलाल और व्याज को हराम (वर्जित ) कर दिया है।
2. हलाल (जायज़) जीविका कमाना सबसे बड़ा पुण्य है।
3. मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दो।
4. रिश्वत लेने और देने वाले दोनों ईश्वर के कोप के भागी बनेंगे।
5. तुम कर्ज़ लेने से बचो क्योंकि वह रात को चिंता और दिन को अपमान का कारण बनता है।
6. वह धन सबसे बुरा है जो ईश्वर को याद करने से रोक दे।
7. ए लोगो ! आपस में एक दूसरे का माल गलत तरीके से मत खाओ।
8. खाद्य पदार्थों की जमाख़ोरी नरक में ले जाने वाला कार्य है।
9. कम तौलने वाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।
10. पूजा और इबादत के बाद जमीन में फैल जाओ और ईश्वर का फ़ज़ल (रोज़ी-रोटी ) तलाश करो।
न्याय व्यवस्था
1. बेशक ईश्वर न्याय करने वालों को पसंद करता है।
2. जब लोगों के साथ न्याय करो तो इंसाफ के साथ न्याय करो।
3. न्यायाधीश को गुस्से की हालत में न्याय नहीं करना चाहिए।
4. झूठी गवाही देना सबसे बड़ा पाप है।
5. न्याय का साथ देने वाला ईश्वर की दृष्टि में सबसे ऊंचा है।
6. अन्याय करने वाला ईश्वर के क्रोध का कारण बनेगा।
7. जो ईश्वर के द्वारा बनाए गए क़ानून के अनुसार फैसला नहीं करेगा वह अत्याचारी है।
8. जनता के कर्मों के अनुसार ईश्वर शासक की नियुक्ति करता है।
9. जब शासन व्यवस्था अयोग्य व्यक्ति के हाथों में चला जाए तो प्रलय का इंतज़ार करना।
10. इंसाफ करने वाला शासक प्रलय के बाद ईश्वर की छत्रछाया में होगा।
एकेश्वरवाद
1. अंतिम ईशदूत मुहम्मद साहब ने समस्त विश्व को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी।
2. जब एक ईश्वर सृष्टि का रचयिता और पालनहार है तब वही हमारी पूजा और भक्ति का सच्चा अधिकारी भी है।
3. इस्लाम में एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया गया है जिसके साक्ष्य वैदिक साहित्य में भी मिलते हैं।
4. जो मनुष्य, देव - पितर- मनुष्य आदि की उपासना करते हैं वह अज्ञान रूप घोर अंधकार अर्थात नर्क में प्रवेश करते हैं (उपनिषद)
5. अगर दो खुदा होते संसार में तो दोनों बला होते ( मुसीबत ) संसार में।
6. यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से भी प्रेम करो।
7. अगर तुम कठिनाई में होते हो तो एक ईश्वर को ही पुकारते हो।
8. जहां और जिस हाल में भी रहो ईश्वर से डरते रहो।
9. अपनी तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ईश्वर से सदा प्रार्थना करते रहो।
10. तुम एक ईश्वर के हो जाओ समस्त संसार तुम्हारा हो जाएगा।
अरब के असभ्य समाज में उनके शत्रु भी
गवाही देने के लिए मजबूर थे कि हज़रत मुहम्मद ने कभी झूठ नहीं बोला, किसी का अधिकार नहीं छीना, किसी से दुव्र्यवहार नहीं किया, किसी को अपशब्द नहीं कहा। जिन लोगों से उनके संबंध थे उनकी सत्यता पर इतना विश्वास रखते थे कि अरब समाज में उनको "अमीन"(सत्यवादी एवं धरोहर रक्षक) के नाम से जाना जाता था। उनके शत्रु भी उनके पास अपना क़ीमती सामान रखवातेे थे। जुआ और शराब को कभी छुआ तक नहीं। शर्मीले इतने कि होश संभालने के बाद किसी ने उनको नंगा नहीं देखा। वह सभों के दुुुःख-दर्द मेें काम आते थे। अनाथ बच्चों को गले लगाते थे और विधवाओं की सहायता करते थे। यात्रियों की सेवा करते थे और वृद्धों का बोझ उठाते थे।
40 वर्ष की आयु तक उन्होेंने अपने आसपास के समाज में अनैतिकता, दुश्चरित्रता, दुव्र्यवहार, दुराचार, अव्यवस्था आदि को देखा और चिंतित होकर आबादी से दूर पहाड़ की गूफ़ा में बैठकर विचार करने लगे। कई दिनों तक व्रत रखकर अपनी आत्मा, हृदय और मस्तिष्क को शुद्ध करके इन समस्याओं का समाधान ढूंढने लगे। वह ऐसी शक्ति प्राप्त करना चाहते थे जिससे बिगड़े हुए संसार को तोड़ फोड़ कर फिर से संवारा जा सके। सहसा उनको अपने हृदय में शक्ति के प्रकाश का अनुभव हुआ जिसके नेतृत्व में वह समस्त मनुष्य जाति का जीवनपर्यंत उद्धार करते रहे।
प्रकाश की प्राप्ति के बाद ग़ार-हिरा (पहाड़ की एक गूफ़ा का नाम) में ही ईश्वर ने फ़रिश्ता के द्वारा पवित्र क़ुरआन का पहला श्लोक (इक़रा - बिसमे - रब्बीकल-लज़ी ख़लक़ अर्थात पढ़िए ईश्वर के नाम के साथ जिसने (समस्त ब्रह्मांड) को पैदा किया ) आप पर अवतरित किया। अगले 23 वर्षों में सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार आयत (श्लोक ) अवतरित होता रहा जो बिना किसी बदलाव के साथ 1450 वर्षों से पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन के रूप में समस्त विश्व में मनुष्य जीवन का मार्गदर्शन कर रहा है।
संकलन : सरफ़राज़ आलम
संपर्क : 8825189373
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