सावन मास का महत्व | Sawan Mahine Ka Mahatva
भारत के प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना देवों के देव महादेव अर्थात भगवान शिवजी को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि सावन के पूरे महीने में जो भी उपासक भगवान महादेव की पूजा अर्चना, अभिवंदन और स्मरण पूरे मनोयोग और विधिविधान के साथ करता है उस पर भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिव अपने उपासकों से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। सावन महीने की पवित्रता इसी से सिद्ध हो जाती है कि इस पूरे महीने में मांसाहार वर्जित किया जाता है। इस तरह के निषेध के पीछे भी बहुत से कारण हैं। इसी सावन के महीने में भगवान महादेव के भक्त कांवड़ियों के रूप में हरिद्वार से गंगाजल भरकर कांवड़ लेकर सैंकड़ों किलोमीटर की धार्मिक यात्रा आस्था और विश्वास के साथ तय करते हुए शिवालयों में गंगाजल चढ़ाते हैं। सावन के महीने में हर तरफ हर हर महादेव का जयकारा गुंजायमान होता रहता है।
सावन महीने में शिव पूजन क्यों किया जाता है
प्राचीन शास्त्रों एवं ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र से विष निकला था। इस विष को पीने के लिए भगवान शिव आगे आएं और उन्होंने विषपान कर लिया। जिस माह में शिवजी ने विषपान किया था वास्तव में वह सावन का महीना था। विषपान के पश्चात शिवजी के शरीर में ताप बढ़ने लगा। सभी देवी देवताओं और शिव के भक्तों ने उनको शीतलता प्रदान करने का विशेष प्रयास किया लेकिन भगवान शिवजी को शीतलता नहीं मिली। शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने मस्तिष्क पर धारण किया। इससे उन्हें शीतलता मिल गई।
यह भी मान्यता है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज अर्थात भगवान इन्द्र ने भी बहुत वर्षा की थी। इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली। इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन महीने में विशेष रुप से सोमवार को भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है। महाशिवरात्रि के पश्चात पूरे वर्ष में यह दूसरा अवसर होता है जब भग्वान शिव की पूजा बडे़ ही धूमधाम से की जाती है।
सावन माह की विशेषता
हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इस माह को भोलेनाथ का प्रिय माह माना जाता है। भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था। अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था।
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय पर्वत पर रानी मैना के घर में जन्म लिया। इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया। यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था। भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखा जाने लगा।
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