हमार कबीर
कबीर पन्द्रहवा सदी के रहस्यवादी, साहित्य पुरोधा रहलन।
सौ साल मानवता के प्रचार कर, अमर संत कबीर भइलन।
सनातनी कट्टरपंथी हिंदुत्व के, घर घर पर झंडा फहरवलन।
मज़हबी आंधर, बाहरी आडंबर भगा के, मारग दिखवलन।
मानव मानव में भइल बैर, सउंसे आतंक झगड़ा मचल बा।
सिक्ख ग्रंथन में सद्गुरु वरा हउअन, गुरु वचन लिखल बा।
भारत के संस्कृति बचाए खतिर, सात समुन्दर पारो गइलन।
रामानन्द के किरिपा, मुसमात पंडाताइन के गरभ ठहइलन।
कारिख के डर, माई बबुआ के, लहरतारा पोखरा लगे त्यागल।
नीमा नीरु जुलाहा के परेम, रामानन्द के शिक्षा भगती आइल।
जात-पात उंच-नीच के दीवार धूल चटलख, धरम पताका लहरल।
“जाति जुलाहा नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदासी।”
काशी में लहरतारा ताल कमल मनोहर फूल पर अवतार लेहलन।
धारणा बा, कबीर जनम से मुस्लिम, रामानन्द कृपा हिंदू कइलन।
गंगाघाट के सीढ़ी पर गिरलन, रामानन्द के पैर कबीर पर पड़लन।
तभे मुंह से राम-राम शब्द आइल, कबीर दीक्षा-मन्त्र पइलन।
कबीर दोहा- हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेतवलन।
जनश्रुतियों में कबीर, हिंदु व मुसलमान का भेद मिटवलन।
हिंदू मुसलमानों का सत्संग कर, अच्छी बातें समझवलन।
जनश्रुति बा, कबीर के एगो बेटाक कमल- बेटी कमाली रहली।
करघा उनकर कमाई, साधु- संतन के भीड़ लागल हम देखली।
कबीर पंथ में, बाल ब्रह्मचारी/विराणी मान के पूजल जाला।
कामात्य उनकर चेला, कमाली-लोई उनकर चेली बड़भागा।
लोई के प्रयोग कबीर, एक जगह कंबल के रुप में कइलन।
“कहत कबीर सुनहु रे लोई।
हरि बिन राखन हार न कोई।।”
कबीर भुच्चड, 'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही--' कहलन।
कलम कबहों ना धरलन, भाखके चेलवन से ग्रंथ लिखवइलन।
उनकर विचार के भीतर, रामनाम के महिमा प्रतिध्वनित होला।
एके बा ईश्वर के माने, कर्मकाण्ड के घोर विरोधी जग बोलेला।
अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद सब, मंदिर नकारत रहलन।
एच.एच. विल्सन कहल, कबीर के नाम पर आठ ग्रंथ लिखलन।
विशप जी. एच. वेस्टकॉट, कबीर के ८४ ग्रंथन के सूची देहलन।
रामदास गौड हिंदु धरम पर, लिखल एकहत्तर बही गिनवहलन।
कबीर के वाणी के संग्रह 'बीजक' के नाम से प्रसिद्ध बा।
इसकर तीन भाग- रमैनी, सबद और सारवी प्रचलित बा।
कबीर ईश्वर के यार, माई, बपसी, स्वामी स्वरुप कहलन।
हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया त- कबीरदास कहलन।
‘हरि जननी मैं बालक तोरा’
तब हिंदुअन पर, मुसलमान आतंक के, कहर छाइल रहे।
कबीर पंथ सुनियोजित कइलन, मुसलमान दल साथे रहे।
बात सरल भाषा में रख, लोगवन के मन में उतर गइलन।
एकरा से दुनो सम्प्रदाय आपस में मिल, संबंध बढ़इलन।
कबीरदास मुस्लिम संस्कृति- गोहत्या के विरोध कइलन।
संत कबीर दास ठंडा जीवन प्रिय, दयानिधान ऊ रहलन।
अहिंसा, सत्य, सदाचार लेखान गुणों के प्रचारक रहलन।
सरल-साधु-संत प्रवृत्ति खतिरा, विदेशन में फइल गइलन।
सउंसे जीनगी काशी में गुजरलन, मिरतू मगहर में गहलन।
बूढ़ रहलन जस कीरती के मार, बहुते दुख में संत रहलन।
काशी त्यागलन, आत्मपरीक्षणार्थ खतिरा विदेश गइलन।
कबीर मगहर जाके दुखी मन से ई दोहा रचना किइलन।
"अबकहु राम कवन गति मोरी। तजीले बनारस मति भई मोरी।।”
दुस्मन के तेवर देख, 'मगहर' जाए के संत मजबूरो भइलन।
चाहेकि काशि रह मुक्ति न पाए, राम भगत बन मुक्ति पइलन।
"जौ काशी तन तजै कबीरा- तो रामै कौन निहोटा।"
जातरा में ही ऊ पिथौराबाद, कालिंजर जिला में पहुँचलन।
रामकृष्ण के छोट मंदिर, संत गोस्वामी जिज्ञासु के देखलन।
पर उनकर तर्क के कबहों पूर्ण समाधान संत नाहीं पइलन।
बात बिचार कर, कबीर की ई साखी से सर झुकइलन।
"बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान।
करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।''
वन से भाग, बहेलवा के खोदल गड्डवा में गिरलन।
हाथी के दुख केकरा सुनावस,,,,,
धर्म जिज्ञासा खतिरा गोसाई, घर छोड़ के अइलन।
हरिव्यासी गड्डवा में गिरलन, निर्वासित हो रोवलन।
कबीर आडम्बर विरोध, मूर्त्तिपूजा के निंदा कइलन।
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौंपहार।
ताते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।।
बारह सौ साल में तुलसीदास के बाद संत रहलन।
एकसौबीस, मगहर में महाप्रयाण, अमर भइलन।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया नगर निगम
पश्चिम चंपारण जिला मुख्यालय
बिहार
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