डोली से अर्थी तक | Doli Se Arthi Tak
शीर्षक : डोली से अर्थी तक
दिनांक : 23 जुलाई, 2023
दिवा : रविवार
जीवन तो यह स्वयं ही पहेली,
प्राण मिलने से प्राण जाने तक।
देखो दिखो के सब प्रतिभागी,
अपना हाथ पैर ये चलाने तक।।
जीवन का तब आरंभ होता,
जब अदृश्य से दृश्य हो जाते हैं।
जीवन का तब अंत यह होता,
जब प्राण त्यजते खो जाते हैं।।
इसी बीच होती जीवन लीला,
प्रकृति की ये शोभा बढ़ाते हैं।
आकर कुछ करना हम सीखे,
फिर कुछ करके दिखलाते हैं।।
जीवन का आरंभ तब होता,
जब धरा पर हम आ पाते हैं।
धरा शृंगार हम भी कहलाते,
जब धरा की शोभा बढ़ाते हैं।।
जीवन मध्य के प्रथम चरण में,
चरमोत्कर्ष हम तो इठलाते हैं।
खुशियों की हद पार कर जाते,
जब डोली चढ़कर हम जाते हैं।।
जीवन में दो खुशियां हैं मिलती,
जीवन मध्य व जीवन आरंभ में।
शेष जीवन तो व्यर्थ ही होता,
जीवन बीतता केवल ही दंभ में।।
जीवन मध्य हम डोली चढ़ते,
चार कहार ढोकर ले जाते हैं।
जीवन अंत हम अर्थी पे चढ़ते,
तब चार परिजन लेकर जाते हैं।।
जीवन मध्य भी धरा से उठते,
फिर धरा पर ही आ जाते हैं।
जीवन अंत जब धरा से उठते,
फिर वापस नहीं आ पाते हैं।।
जन्मोत्सव विवाहोत्सव में तो,
खूब मंगलगीत गाए जाते हैं।
दुनिया से जब होते जुदा हम,
तब दुनिया को हम रुलाते हैं।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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