बन्दर की शादी : हिंदी कविता | Bandar Ki Shaadi : Hindi Kavita
कलम की खनक
विषय : बन्दर की शादी
दिनांक : 23 मई, 2023
दिवा : मंगलवार
एक बंदर था बहुत उन्मादी,
बंदर ने लगाई बन्दर की शादी।
मुश्किल थे उस बन्दर की शादी,
एकत्रित हुए थे शादी प्रतिवादी।।
बन्दर नहीं रहता घर के अन्दर,
लांघता चलता कई कई समन्दर।
बन्दर निकला सौभाग्यशाली,
बन्दरिया भी मिली बहुत धुरंधर।।
बन्दर थे इस बन्दर से परेशान,
शादी भी नहीं थी इतनी आसान।
था बहुत ही शरारती यह बन्दर,
शादी में पड़े बहुत ही व्यवधान।।
जल्दी जल्दी हो गई अब शादी,
छिन गया जीवन अब ये उन्मादी।
बन्दर का जीवन संभल चुका था,
आईं आशीष देने बन्दर की दादी।।
बात समझाईं सुनो तुम बन्दर,
पत्नी संग रहना घर के अन्दर।
पत्नी तुम्हारी है बहुत धुरंधर,
तुम भी हुए भाग्य के सिकंदर।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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