बच्चों की शिक्षा की चिंता शिक्षाप्रद कहानी | Moral Story in Hindi | Short Motivational Story
लघु कथा : बच्चों की शिक्षा की चिंता
मंजू का पति सुरेश एक कंपनी में नौकरी करता था। उसे सब कांट छांट कर महीने के दस हजार रुपए मिलते थे। पूरी तनख्वाह राशन,पानी, बिजली और मकान के किराए में चली जाती थी। दस दिन पूरे भी नही होते थे। हाथ खाली हो जाता था। जरूरत पड़ने पर दुसरो के सामने हाथ फैलाना पड़ता था। उसके दो बच्चे रानी और पप्पू चौथी और पांचवी क्लास में एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे।
मंजू के मोहल्ले के कई बच्चे खूब सुंदर ड्रेस पहन कर प्राइवेट स्कूल में जाते थे और खूब फर्राटे दार अंग्रेजी बोलते थे।
उनको देखकर मंजू का भी दिल ललचाता था की कास उसके बच्चे भी अगर उन्ही की तरह प्राइवेट स्कूल में जाते तो कितना अच्छा होता।
यही सोचकर एक दिन वो अपने पति के काम पर जाने के बाद एक बड़े प्राइवेट स्कूल में गई और अपने बच्चो के एडमिशन के लिए पूछ ताछ किया।
जानकारी मिलते ही उसे चक्कर आने लगा। सिर्फ एडमिशन का पचास हजार रूपए। बाकी किताब और ड्रेस का अलग। महीना की फीस पच्चीस सौ रूपए।
रात में उसने उदास मन से अपने पति से बताया। सुरेश ने हंसते हुए कहा ये तो कम बताया। इससे भी ज्यादा फीस होती है। देखो मन छोटा मत करो। हमारे दोनो बच्चे अनमोल हीरे है। हम अपने बच्चो को इतना प्यार और दुलार देंगे की वे प्राइवेट स्कूल की चकाचौंध भूल जायेंगे। हम दोनो बारी बारी से उनको खुद घर में ट्यूशन पढ़ाएंगे।
सरकारी स्कूल में भी पढ़ कर हमारे बच्चे कामयाब इंसान बनेंगे। ऐसे हजारों उदाहरण है।
मंजू ने कहा आप ठीक कह रहे हैं जी और वो अपने दोनो बच्चो को अपने सीने से लगा कर प्यार करने लगी।
लेखक श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
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श्याम कुंवर भारती
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