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वट सावित्री त्योहार पर कविता | Vat Savitri Puja Tyohar Kavita

वट सावित्री त्योहार पर कविता | Vat Savitri Puja Tyohar Kavita

वट सावित्री त्योहार

वट सावित्री त्योहार

(कविता)
यमदूत ने ले लिए, सावित्री पति प्राण,
वापस लौटाने का पत्नी ने लिया ठान।
यमराज ने बहुत समझाया सावित्री को,
प्राण लौटाने का, नहीं है कोई विधान।

सावित्री भी अड़ गई थी अपनी हठ पर,
हर कीमत पर चाहिए उसको सत्यवान।
सौभाग्यवती का वर मिला सावित्री को,
बिन सोचे धर्मराज ने दे दिया वरदान।

वचन देकर धर्मसंकट में घिरे धर्मराज,
सावित्री की बातें सुनकर, हुए परेशान।
पति के प्राण लेकर नहीं जा सकते हैं,
सती सावित्री को काम आया था ज्ञान।

यमराज को, लौटाने पड़े थे पति प्राण,
पतिव्रता कारण, जीवित हुए सत्यवान।
नारी जगत में आदर्श बन गई सावित्री,
सुहागिनों ने शुरू किया ये व्रत महान्।

वट सावित्री व्रत, आस्था का प्रतीक है,
अपनी कृपा की वर्षा करते हैं भगवान।
पति के दीर्घायु होने की अराधना होती,
पत्नी प्रेम की होती है सच्ची पहचान।

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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