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जदीद-व-मुन्फ़रिद ग़ज़ल

जदीद-व-मुन्फ़रिद ग़ज़ल

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ये " शह्र-ए-मीर तक़ी " है, कि, " बाक़ियात " हैं हम!!
" मुआश्रा " है " प्रागन्दा ", " सालिह़ात " हैं हम!!

कभी भी तुम नज़र-अन्दाज़ मत करो हमें,यूँ!!
मियाँ!," जदीद किताबों " की " लफ़्ज़ियात " हैं हम!!

हमें मिटा न सकेंगे,ज़माने के ये ख़ुदा/ ये अमीर!!/
हमें मिटा न सकेंगे, जहाँ के "शाह-व-वज़ीर "!!
कभी मरे नहीं हम, कि, " बा-ह़यात " हैं हम!!

किसी भी सूबे/ राज्य से हम को निकाल सकते हो,क़या ?!
" उनीस सौ " से भी " पहले " के " काग़ज़ात " हैं हम!!

तुम्हारी नज़रों में " अन्मोल-रत्न " हैं हम, यार!!
सभी की नज़रों में " हीरे के ज़ेवरात " हैं हम!!

ज़माने के सभी " उश्शाक़/ इश्शाक़" हैं " बहुत हैराँ "!!/
ज़माने के सभी " शाह-व-वज़ीर " हैं " हैराँ/ हैरान "!!
" जदीद और हसीं-तर सानह़ात/ ह़ादसात " हैं हम!!

हैं हम ही " रौनक़-ए-दुन्या "," ज़माने की शोभा "!!
जहाँ में " इश्क़-व-वफ़ा " के दिन और रात हैं हम!!

" जहाँ" की सारी/ जहाँ के सारे " ख़ुराफ़ात " में " मुलव्विस " हैं!?
कि/ के " बे-नमाज़ी मुसलमान-ए-वाहियात " हैं हम!?

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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुख़न, फिर कभी पेश किए जाएँगे,इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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PROF.DR.RAAM-DAAS PREMI RAAJ-KUMAAR JAANEE DILEEP KAPOOR " INSAAN PREMNAGARI "

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