विश्व सामाजिक न्याय दिवस पर कविता | Vishv Samajik Nyay Diwas Kavita
गरीबी या लाचारी
(कविता)
“विश्व सामाजिक न्याय दिवस पर आप सभी मित्रों एवं साथियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाईयां।”
गरीबी या लाचारी
“इसका लक्ष्य गरीबी से दिलाना है निजात,
बेरोजगारी दूर करना है, दूसरी खास बात।
लैंगिक समानता स्थापित करना है जरूरी,
किसी के साथ रहे नहीं कोई भी मजबूरी।”
गरीबी या लाचारी बहुत तकलीफ देती है,
कभी कभी यह जान पर पड़ती है भारी।
जो जीवन जीता है गरीबी या लाचारी में,
उसे ऊपर से परेशान करती बड़ी बीमारी।
गरीबी या लाचारी …………
न भूखे पेट को खाना नसीब हो सकता,
रोता गरीब पुरुष, रोती है लाचार नारी।
दूधमुंहे बच्चे को, दूध नहीं मिल पाता,
योजनाएं धूल फांकती रहती हैं सरकारी।
गरीबी या लाचारी…………..
लड़ते लड़ते इंसान बेमौत मर जाता है,
गरीबी या लाचारी, तलवार है दुधारी।
इससे पार पाना आसान नहीं होता है,
कोई गरीब कितनी भी कर ले तैयारी!
गरीबी या लाचारी…………
वो क्या जाने पीर पराई, हे मेरे भाई?
जाके पैर न फटी विबाई की हो बारी।
रोटी सब कुछ भूला देती है, जग में,
घर में मुंह छुपकर, रोती ईमानदारी।
गरीबी या लाचारी………….
गरीबी गलत रास्ते पर भी ले जाती है,
इंसान से अपराध करवाती है लाचारी।
मरता क्या नहीं करता, सब जानते हैं,
जो नहीं जानते हैं, वे लोग हैं आनारी।
गरीबी या लाचारी……………..
चोरी डकैती का कारण भी लाचारी है,
शुरू से यह जानती यह दुनिया सारी।
ईश्वर अगर जन्म देते हैं, किसी को,
भूल से भी न दे, गरीबी या लाचारी।
गरीबी या लाचारी………
सारे गरीब, एक समान नहीं होते हैं,
इनमें भी होती बेमिसाल ईमानदारी।
लाचारी किसी बुरे सपने की तरह है,
सब जानते हैं प्रभु गोवर्धन गिरधारी।
गरीबी या लाचारी…………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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