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शरद ऋतु की पहचान : शरद ऋतु पर कविता | Sharad Ritu Par Kavita

शरद ऋतु की पहचान : शरद ऋतु पर कविता | Sharad Ritu Par Kavita

शरद ऋतु की पहचान
(कविता)
शरद ऋतु की चांदनी होती बड़ी मस्तानी,
ठंड में ठिठुरती दुनिया है उसकी दीवानी।
पागल पवन पुरवाई के अपने नखरे होते,
मजा लूटा करती है शरद ऋतु में जवानी।
शरद ऋतु की चांदनी………….

सुबहों की गुलाबी धूप कैसे भूल सकते हैं?
सितारों भरे गगन, ऊपर से शाम सुहानी।
बुढ़ापा भी खिल उठता, पारिजात के जैसे,
मिलती जुलती, चम्पा चमेली की कहानी।
शरद ऋतु की चांदनी…………

शरद पूर्णिमा को, कौन नहीं जानता है?
मस्ती में ओस गिरती, जब आसमानी।
इसी ऋतु में, रजाई का सम्मान संभव,
कहानी बनती बिगड़ती है, नई पुरानी।
शरद ऋतु की चांदनी…………..

एक सकारात्मक सोच की जरूरत होती,
ग्रीष्म ऋतु जैसे, चलती नहीं बेईमानी।
बड़े मनभावन लगते हैं दुनिया के मेले,
खुशियों के लिए, ऋतु जाती है पहचानी।
शरद ऋतु की चांदनी…………

सभी तैयार कर लें अपनी अपनी रजाई,
इसी में दिख रही है, जीवन की भलाई।
शीतल हवा भी मौके का लाभ उठाती है,
परंतु यह ऋतु करती नहीं है मनमानी।
शरद ऋतु की चांदनी……….
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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