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लालच बुरी बला है : कविता | Lalach Buri Bala Hai Hindi Kavita

लालच बुरी बला है : कविता Lalach Buri Bala Hai Hindi Kavita

लालच बुरी बला है
(कविता)
लालच बुरी बला है, सबको छला है,
इसका एक बड़ा लंबा सिलसिला है।
यह इंसान को, अंधा बना देता है,
जिसने यारी की है, भाग्य जला है।
लालच बुरी बला ………….

लालच इंसान को पूरा गिरा देता है,
अबतक हुआ कहीं किसका भला है?
लोग जड़ से उखाड़ फेंक दिए जाते
यह लालच कुछ ज्यादा मनचला है।
लालच बुरी बला………….

लालची लोगों का कोई ईमान नहीं,
करीब आनेवाले का, दिन ढला है।
इसने इंसान को शैतान बना दिया,
जो यार बना इसका, हाथ मला है।
लालच बुरी बला.………….

खेल खत्म करके, जेल ले जाता है,
फंसने के बाद, कब किसका चला है?
सदाचारी भी,भ्रष्टाचारी बन जाता है,
दाग़ लगाने की इसमें बड़ी कला है।
लालच बुरी बला…………..

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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