क्षमा पर कविता | Kshama Par Kavita
क्षमा सच्ची साधना
क्षमा ही सच्ची साधना है,
क्षमा सच्ची आराधना है।
क्षमा ही एक ऐसा बंधन है,
जिस डोर सबको बाँधना है।।
क्षमा से ही तो संत शोभते,
संत भाव ही होता पावन है।
संत भाव में होता सनातन,
हर्ष बरसाता जैसे सावन है।।
सर्वधर्म समभाव ये समझे,
वही सनातन कहलाता है।
बैर भाव न रखता किसी से,
आदर स्नेह ये दिखलाता है।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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