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दुनिया इसी का नाम है चौपाई छंद आधारित कविता

दुनिया इसी का नाम है चौपाई छंद आधारित कविता

दुनिया इसी का नाम है
(चौपाई छंद आधारित कविता)

जिसके लिए सारी दुनिया बजाती ताली,
अपने ही लोग उसे, देते रहते हैं गाली।
खुद को भुलाकर जो रखे सबका ध्यान,
आज लोग उसे ही कहते बड़ा बेईमान।

जिससे जिसका मतलब, करता है प्यार,
जिससे मतलब नहीं, समझता है बेकार।
बड़ा अजीब लगता है, दुनिया का मेला,
लेकिन इस जग में हर कोई है अकेला।

घर परिवार हेतु चोरी करता है हर चोर।
पकड़े जाने पर, कौन देखता उसकी ओर?
सारे दुनिया से जब हार जाता है इंसान,
तब उस इंसान के, काम आते भगवान।

जब किसी का साया, छोड़ देता है साथ,
परम पिता परमेश्वर थाम लेते हैं हाथ।
सदा खुला रहता है, भगवान का दरबार,
वहां पर हो जाता है, सभी का बेड़ा पार।

दूजे के काम आए, है वही सच्चा इंसान,
प्रभु भी कर देते, जीवन उसका आसान।
अपने जीवन में जो करता है परोपकार,
ईश्वर भी उसके लिए करते नहीं इंकार।

सारी दुनिया जिसका करती है अपमान,
उसे अपने शरण में स्थान देते भगवान।
हाड़ मांस का तन, किस बात का घमंड?
हर घमंडी को ईश्वर, देते हैं दण्ड प्रचंड।

चाहे सारी दुनिया में, पड़ जाए अकाल,
फिर भी भ्रष्टाचारी चलते अपनी चाल।
बड़े चोर डाकू को माननी पड़ती है हार,
यदि ईमानदार है वहां तैनात चौकीदार।

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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