Ticker

6/recent/ticker-posts

बिहार जाति आधारित जनगणना पर व्यंग्य कटाक्ष कविता

बिहार जाति आधारित जनगणना पर व्यंग्य कटाक्ष कविता

satire-kavita-on-bihar-caste-based-census-vyang-kavita-in-hindi


हे प्रगणक !
ठंड से मत डर।
गणना कर।
भवन गिन।
मकान गिन।
इंसान गिन।
सर्दी-गर्मी क्या है ?
माया है। ' माया महागठनी ..।
माया से ऊपर उठ।
सर्दी से कोई नहीं मरता।
सर्दी से यदि इंसान मरते,
तो साईबेरिया में कोई जिंदा नहीं बचता।
हे वीर प्रगणक !
तू भी ठंड में मरने से मत डर।
अपने रक्त में उबाल ला।
अस्थि-मज्जा को धारदार बना। दधीचि बन।
अपने अस्थियों का बज्र बना।
पुष्प की जिन जनों के पथों पर बिछने की अभिलाषा है,
उनमें तेरा भी नाम होगा।
संघ के भरोसे मत बैठ!
संघ खुद तेरे भरोसे बैठा है।
गीजर में नहाये,
ब्लोअर के मंद - मंद बहते समीर वाले कमरे में बैठे अधिकारियों ने सायं चार बजे के बाद गणना का आदेश दिया है।
उनका आभार मान।
उन्होंने शहादत का अवसर प्रदान किया है।
कर्तव्य पथ पर शहादत सबके नसीब में नहीं है।
शीतनिद्रा केवल श्रीहरि के हिस्से है। तू इससे बाहर निकल।
चल।
गणना कर।
घबरा मत।
जोश और जुनून जगा।
देशभक्ति के तराने सुन।
वीर- रस की कविताएँ गा।
तेरे पूर्वजों ने हिमयुग झेला है।
तुझसे यह सर्दी नहीं झेली जाती ?
... जबकि विषधर सरीसृप भी बिलों में दुबके पड़े हैं,
तू बाहर निकल।
खेतों को नाप ले।
मेड़ों को कुचल डाल।
मत भूल, तू मास्टर है।
तू भले हाड़-मांस का बना है
लेकिन सरकार तुझे जंगरोधी इस्पात से बना मानती है।
सरकार की राजनैतिक महात्वाकांक्षा पूर्त्ति का तू सबसे सुयोग्य साध्य है।
हर एक सरकारी
गैरसरकारी योजना तेरे भरोसे है।
सरकार और समाज के भरोसे पर खड़ा उतर।
एक रानी ने अपनी नंग-धड़ंग जनता को उपदेश दिया था, ' रोटी नहीं मिलती तो केक खा !'
तू भी ठंड लगे तो गाना गा !
तू प्रेमचंद का हलकू नहीं है।
पूस की रात का शोक मत मना
चल।
गणना कर।
भवन गिन।
मकान गिन।
इंसान गिन।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ