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आख़िर लोग चुप क्यों हैं...? Aakhir Log Chup Kyon Hain

आख़िर लोग चुप क्यों हैं...?

इस युग में शायद सबसे अधिक महसूस किया जा रहा है कि यह बोलने का युग है और वास्तव में एक नई कहावत का इस्तेमाल होने लगा है कि " जो बोला वह सफल हो गया "।इसीलिए अब हर कोई बोलने लगा है। चाहे किताब हो या अखबार, व्हाट्सएप हो या फेसबुक, सोशल पोर्टल हो या ट्विटर हैंडल, विद्यादर्शन हो या सम्मेलन, घर हो या कार्यालय, यात्रा में हो या घर में, बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरुष, विद्वान हो या अज्ञानी, अमीर हो या गरीब, उपदेशक हो या विचारक, राजा हो या प्रजा, सब ऐसे बोल रहे हैं जैसे बोलने का कोई वायरस फैल गया है। इसका मतलब है कि कोई तो ऐसी शक्ति है जिसने सबको कुछ न कुछ बोलना सिखा दिया है।


कौन सी ताकत है जिसने सबको बोलना सिखा दिया

अब एक सवाल उठता है। ऐसी कौन सी ताकत है जिसने सबको बोलना सिखा दिया है और यह भी बता दिया है कि जो जितना ज्यादा बोलेगा, उसकी उतनी ही पहचान होगी और जिसकी जितनी पहचान होगी, वह उतना ही सफल होगा, उस शक्ति को पहचानना होगा। हो सकता है ऐसी शक्तियां हमारे आस-पास हो और हम उससे बेख़बर हों। दूसरा सवाल है कि भावनाओं के विपरित बोलना किसने सिखा दिया है ? बोलने वाला क्या बोलेगा ? बोलने वाला वही बोलेगा जिससे दुनिया में उसका बोलबाला हो जाए। कोई नहीं कह सकता कि वह बोलना नहीं जानता है।

बोलने का क्या प्रभाव पड़ेगा यह सोचना ज़रूरी नहीं

हर कोई कुछ न कुछ बोलकर अपने मन का भड़ास मिटा रहा है। यह भी एहसास है कि कहीं लोग यह न समझ लें कि उसे बोलना नहीं आता है। बोलना तो एक कला है, इसलिए इसे सीखने में कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता।अभी बोलना सीखें, बाद में सोचेंगे कि क्या बोलना है। बोलने का क्या प्रभाव पड़ेगा यह सोचना ज़रूरी नहीं है, बस बोलना है। सभी के हाथ में वैज्ञानिक हथियार है, पहले अपना संदेश तो दूसरों तक पहुंचाया जाए। इसके अच्छे और बुरे प्रभावों पर बाद में विचार किया जाएगा। 

आवाज़ में आवाज़ मिलाना भी एक कला है

आवाज में आवाज मिलाना भी एक कला है। माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह, आपने सही कहा, आदि भी बोलने का एक अंदाज़ है। कोई अच्छा बोले या बुरा, यह तो बोलने वाला जाने। मुझे तो उसकी हाँ में हाँ मिलाकर ख़ुद को बस बोलने वाला साबित करना है। भाई सब तो बोल ही रहे हैं, तो चुप कौन है ? शायद इसीलिए बड़ों ने फरमाया है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब हर आदमी, बहुभाषी, मुफ्ती और मुंसिफ होगा। 

सरफराज आलम

चुप कौन है ? चुप वही है जिसे बोलना चाहिए

तो फिर चुप कौन है ? चुप वही है जिसे बोलना चाहिए। चुप वह है जिसे असत्य से अधिक ऊँची आवाज से बोलना चाहिए। चुप वह है जो सत्य को अच्छी तरह जानता है। चुप वह है जिसे ईश्वर ने एक बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। चुप वह है जिसे अपने चुप रहने का एहसास है। चुप वह है जिसे हार जाने का ख़ौफ़ हैै। कहीं ऐसा तो नहीं कि सच खामोश हो गया है या सच की पहचान कहीं खो गई है। सच चुप हो गया है या सच बोलने वाले कमजोर पड़ 
गए है। 


जिसे चुप रहना चाहिए वह बोल रहा है

किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जिसे बोलना चाहिए वह चुप है, जिसे चुप रहना चाहिए वह बोल रहा है। आख़िर ऐसा क्यों है ? क्या सत्य की व्याख्या बदल गई है या किसी ने सत्य बोलने वालों पर पहरा लगा दिया है। हम रुक कर सोंचे, कभी इसी समाज में सत्य तथा न्याय की बात बोलने वाले अधिक होते थे, किसी को सच बोलने के लिए बहुत हिम्मत नहीं जुटानी पड़ती थी। इसलिए कि कुछ लोग होते थे जो सच की आवाज बुलंद करते थे और उनकी आवाज में आवाज मिलाने वालों की संख्या बढ़ती चली जाती थी। 

अखिर क्यों हम सत्य और न्याय का साथ नहीं देना चाहते हैं ?

आज भी कुछ हिम्मतवर लोगों की जरूरत है जो असत्य को नकार सकें और सत्य को जोर से कहने की जुर्रत करें। अखिर क्यों हम सत्य और न्याय का साथ नहीं देना चाहते हैं ? . क्या सच का साथ देने वालों की दुनिया उजड़ जाती है ? क्या सच बोलने वाले किसी ज़ालिम अथवा क्रूर की प्रतीक्षा कर रहे हैं ? हाथों से ज़ुल्म रोकने की ताक़त तो अब ख़त्म हो चुकी है, ज़ुबान से सच बोलने का हौसला भी अब दम तोड़ रहा है। ऐसा लगता है कि अब हमारे दिलों में भी असत्य परवान चढ़ रहा है। 


हम असत्य के साथ क्यों हो गए हैं ?

सत्य और असत्य की जंग तो हमेशा से रही है, सोचना यह है कि हम किधर वाले हैं ? सत्य की विजय तो हमेशा हुई है। गौर यह करना है कि क्या हमारे सच की भी जीत हुई है ? हम असत्य के साथ क्यों हो गए हैं ? हर दिन सत्य को काले पर्दे में क्यों छुपा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अधिक दौलत एक इम्तिहान है, तबाही ही लेकर आता है फिर भी उसे ही प्राप्त करने में लगे हुए हैं। जीवन में सादगी ही सच है, फिर भी हमारे जीवन में सजावट और दिखावा है। जीवन चार दिन का है, फिर भी माल सौ बरस के लिए इकठ्ठा करते हैं, इत्यादि। सबसे पहले तो सत्य और असत्य की पहचान करनी होगी। हमारा दुश्मन कौन है जो असत्य बोलने को उकसा रहा है? सत्य और झूठ को अपने घरों से बाहर निकालने का हौसला पैदा करना होगा। असत्य विश्वास में हो या रिवाज में, सभ्यता में हो या संस्कृति में, शिक्षा में हो या संस्कार में, सब से रिश्ता तोड़ना होगा। अब तो बर्थडे ही नहीं बुढापे में मैरिज एनिवर्सरी की महामारी भी फैल गई है। विवाह और निकाह में दिखावा के सिवा बहुत कम धार्मिक मूल्य रह गया है। मुस्लिम शादियां तो अक्सर इस्लाम का मुँह चिढ़ाया करती हैं। झूठ को झूठा जानकर भी उसका साथ देना हमारी फितरत हो गई है। झूठ को जैसे सच का सर्टिफिकेट मिल गया है। मानवीय मूल्य जैसे धुआं हो चुके हैं। 

सत्य कमजोर हुआ है, अभी मरा नहीं है

आज मनुष्यता का ह्रास इस बात की गवाही दे रहा है कि लोगों ने सच्चाई का साथ देना छोड़ दिया है। वजह कुछ भी हो हम इंसान खुद ही अपनी मानवीय मूल्यों का किला तहस-नहस कर रहे हैं। हर किसी को फिर से एक नई शुरुआत खुद अपने घर से करनी होगी। मैं समझता हूं कि सत्य कमजोर हुआ है, अभी मरा नहीं है। सत्य तो हमारे दिलों में हिचकोले मारता रहता है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सच्चा हृदय रखने वाले लोगों का दिल उन्हें जरूर झकझोरेगा और वे बिना किसी नुकसान की परवाह किए सत्य और न्याय का परचम लहराएंगे। 


बोलना तो सीखना होगा

सत्य गूंगा नहीं हो सकता है केवल हमें अपनी जुबान देनी होगी। सत्य कभी पराजित नहीं हो सकता, सत्य आया ही है जीतने के लिए। यदि हम सत्यवादी हैं तो हमें सत्य का नारा बुलंद करना ही होगा। असत्य के तमाम दरवाजे को बंद करना होगा। आइए हम अभी भी सत्य की गुहार सुनें। कहीं ऐसा न हो कि हमारी अक्षमता सिद्ध हो जाए और ईश्वर किसी और को सच्चाई का पहरेदार बना दे, जिसकी शुरुआत शायद हो चुकी है, कहीं हम पीछे न रह जाएँ। यह एक धार्मिक तथा वैज्ञानिक सत्य है कि " सत्य की मौत में हमारा विनाश है "। बोलना तो सीखना होगा इसलिए कि सच बोलने के लिए भी बोलना सीखना पड़ता है। अगर सच जान गए तो बोलना ही होगा। समाज के बुद्धिजीवियों को पहल करना ही होगा। उन्हें मोह, माया और लालच के समुद्र से बाहर आना होगा। विद्वानों, ज़िम्मेदारो और खुशहाल लोगों को जमीन पर उतर कर सत्य को जिवित रखने के लिए गलियों में घूमना होगा। हमारे नेता नाशवान दुनिया की खातिर चुनाव के समय गलियों और सड़कों पर भटकते हैं और हम सत्य की खातिर इतना भी नहीं कर सकते..! 

सुविचारको को आगे आना होगा

लोग हमेशा अपने रहनुमा के आगे बढ़ने का इंतज़ार करते हैं। समाज के सुविचारको को आगे आना होगा। बिखरे हुए अच्छे लोगों को सामने आना होगा। यही हमारा इतिहास रहा है। इतिहास फिर से लिखा जाना चाहिए। ऐसा न हो कि क़यामत का दिन ( मृत्यु ) आ जाए और हमें पछताना पड़े। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमें सत्य को समझने, बोलने और उसका साथ देने की क्षमता प्रदान करें, आमीन!
" कहते है कि समाज है एकता की एक मिसाल, 
 क्या बात है कि भीड़ में तन्हा खड़े हैं हम" ?

सरफराज आलम, 
आलमगंज, पटना 
संपर्क : 8825189373

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